बुधवार, 8 अगस्त 2012

जीवन संध्या


ज्यों ज्यों शाम गहराने लगती है
लोगों को एक एक कर मिलने आते देख
मन कोने में दुबक जाता है
और बुद्धि सजग हो जाती है |
वे अतिथि ले जाते हैं
चेतना को अतीत में
और घर के सामने के वृक्ष
लुप्त होने लगते हैं |
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..........
सड़क पर
आने जाने वाली गाडियां
घड़ी बन
दिखाने लगती हैं समय |
मेहमान पल भर में
गायब होने लगते हैं एक एक कर
चलना चाहिए घर के अंदर
बुद्धि कह उठती है |
अंदर जाते ही
कमरे में रेडियो चहक उठता है
और मन को  साथ गुनगुनाते देख
चारों ओर गुनगुनी धूप फ़ैल जाती है रात में |

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