शनिवार, 25 अगस्त 2012

एक बेटी चाहिए !




नहीं किसी पिता में
मनोबल
देने का समान अधिकार
संपत्ति में
फिर भी कहें
मेरे लिये
एक समान बेटा बेटी |
अरे भई !
ये तो फैशन है
प्रगतिशीलता का
क्यों दें सम्पति बेटी को
दूसरे का घर क्यों धनी बनाएँ
इतने मूरख तो हम नहीं |
बेटी
डाले गंगाजल मरते समय
न दे मुखाग्नि
न हरे हमारा दुःख
एक से अधिक बेटी न चाहें हम
कौन पाले उन्हें
फिर दान करे दूजे को |
आजीवन
बेटी की सुरक्षा के लिये चिंतित मन
तड़पता ही रह जाता
मुंह सदा कुम्हलाया रहता
जीने का हक
बेटी के पिता को भी है
अब न ढोएगा वो बेटियों का बोझ |
बेटियों से चलता वंश
बेटियों की समस्या
कितना सुलझाएं
उनकी  संतान हम पहचानें
एक बेटी बहुत
बेटे चाहे हों चार
पुण्य मिले
जो कर पायें कन्यादान |





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें