सबेरे हाफ पैंट टी शर्ट में
सेहत बनाती
लड़कियां
सच में जीती
हैं जिंदगी
और उनके अंदर
की आग
देती
है उन्हें आत्मनिर्भरता |
कल्पना
चावला बन
जिंदगी की
उंचाईयों को छू
हर
संकीर्णता को
पांव तले रौंदने का सत्साहस |
आखिर वे भी
तो
बेटियां हैं
न
वे हवा की खुशबू
सूंघ सकती
हैं
तो
हमारी बेटी क्यों नहीं ?
हमने बेटी को
मात्र दान की वस्तु बना
उसके हिस्से का आसमान
बेटे को सौंप रक्खा है
आखिर क्यों ?
क्या हमारी यह अकर्मण्यता नहीं
जो जेवरों से लाद हमने उसे
सुरक्षित रखा है
घर की चाहरदीवारी में ?
आखिर क्यूँ है
हमारी यह प्रवृति
रोबोट बना
उसे
उसके वजूद को
नकारने
की चाल तो नहीं ?
मातृत्व के नाम पर
घर में बांधना
क्यूँ
मैं यह सोंचू
आज
क्या
मुक्केबाज मेरी कॉम
माँ नहीं ?
..........
छोटा सा प्रश्न
आप
से
अपनी बेटी का
आसमान
बांध
सागर में
तो नहीं डाल दिया ?
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