बुधवार, 8 अगस्त 2012

लड़की का आसमान


सबेरे हाफ पैंट टी शर्ट में
सेहत बनाती लड़कियां
सच में जीती हैं जिंदगी
और उनके अंदर की आग
देती है उन्हें आत्मनिर्भरता |
कल्पना चावला बन
जिंदगी की
उंचाईयों को छू
हर संकीर्णता को
पांव तले रौंदने का सत्साहस |
आखिर वे भी तो
बेटियां हैं न
वे हवा  की खुशबू
सूंघ सकती हैं
तो हमारी बेटी क्यों नहीं ?
हमने बेटी को
मात्र दान की वस्तु बना
उसके हिस्से का आसमान
बेटे को सौंप रक्खा है
आखिर क्यों ?
क्या हमारी यह अकर्मण्यता नहीं
जो जेवरों से लाद हमने उसे
सुरक्षित रखा है
घर की चाहरदीवारी में ?
आखिर क्यूँ है
हमारी यह प्रवृति
रोबोट बना उसे
उसके वजूद को
नकारने की चाल तो नहीं ?
मातृत्व के नाम पर
घर में बांधना क्यूँ
मैं यह सोंचू आज
क्या मुक्केबाज मेरी कॉम
माँ नहीं ?
..........
छोटा सा प्रश्न
आप से
अपनी बेटी का आसमान
बांध
सागर में
तो नहीं डाल दिया ?

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