गुरुवार, 30 अगस्त 2012

हाइकू - 26


कैसे सम्बन्ध !
बेटी लागे प्यारी
दामाद बिन |

कैसे सुधारें !
सड़े गले सम्बन्ध
स्त्री स्तर  |

पिता सुन !
तेरे ही कर्म-फल
भोगती बेटी |

बुधवार, 29 अगस्त 2012

नाम होता हमारा


काश !
हमें मिलती
एक कोच
कुश्ती की
हम भी चखाते मजा
सासु माँ को
घर में दंगल चलता
कितना मजा आता
पतिदेव !
कोने में सहमें से
बैठे रहते
मुहल्ले में
रहती चर्चा हमारी
घर में होते इतने दबंग कि
कोई खोल दे दरवाजा तो
कर्जदार भागें उलटे पैर
नाम होता हमारा
फलां की बीबी से बचियो जी |

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

कृतज्ञता ? !!




आज
हम
कृतज्ञ हैं
शहीदों के
दिए थे उन्हें धन सम्मान 
पर
रिश्तों ने
कितना शोषण किया
उनके परिवार का
यह तो
घर की बात है
बाकी सब का अपना नसीब है |

हाइकू - 25


दुखी क्यों ! उठ
खड़ी हो दहाड़ तू
जग डरेगा |

निगल चली
मैं कड़वी भेषज 
अपमान की |

कोई दान
श्रमदान से बड़ा
रख याद तू |


मशाल बनी
वो तो सारा जीवन 
संतति हेतु |

सोमवार, 27 अगस्त 2012

तांका - 4


मौसमी वर्षा
नहीं हूँ मित्र मेरे
पवन हूँ मैं
संग हूँ साथ तेरे
कहाँ ढूंढे तू मुझे |

ढूंढे जो साथी
जन्मदाता में निज
नहीं भटके
उसका मन कभी
क्या ढूंढे युवा !

हो जा आज तू
मन पर सवार
थाम चाबुक
उड़ ले बेखटक
आसमान साफ है |

हाइकू - 24


मौन रहें 
नाते , रिश्ते , औलाद
जायेंगे मिट |

प्यार का कर्ज
निज जन्मदाता का
भूली औलाद |

व्यथा की कथा
से दूर क्यों भागते
मेरे यार !

करूँ मैं पार
पथरीला संसार
पुरुषार्थ से |

रविवार, 26 अगस्त 2012

हाइकू - 23


संस्मरण तो
भोगी हुई बूंदें हैं
निज श्रम की |

रह वहाँ पे
जहां तेरा मूल्य हो
निकल चल |

है हर व्यक्ति
निज भाग्यविधाता
न कर आस |

कल की छोड़
उड़ी मैं तो जी भर
आने दो अरि |

शनिवार, 25 अगस्त 2012

एक बेटी चाहिए !




नहीं किसी पिता में
मनोबल
देने का समान अधिकार
संपत्ति में
फिर भी कहें
मेरे लिये
एक समान बेटा बेटी |
अरे भई !
ये तो फैशन है
प्रगतिशीलता का
क्यों दें सम्पति बेटी को
दूसरे का घर क्यों धनी बनाएँ
इतने मूरख तो हम नहीं |
बेटी
डाले गंगाजल मरते समय
न दे मुखाग्नि
न हरे हमारा दुःख
एक से अधिक बेटी न चाहें हम
कौन पाले उन्हें
फिर दान करे दूजे को |
आजीवन
बेटी की सुरक्षा के लिये चिंतित मन
तड़पता ही रह जाता
मुंह सदा कुम्हलाया रहता
जीने का हक
बेटी के पिता को भी है
अब न ढोएगा वो बेटियों का बोझ |
बेटियों से चलता वंश
बेटियों की समस्या
कितना सुलझाएं
उनकी  संतान हम पहचानें
एक बेटी बहुत
बेटे चाहे हों चार
पुण्य मिले
जो कर पायें कन्यादान |





तांका - 3


झूठ की नींव
पे बन थे जो रिश्ते
चुभें सदा वे
आजीवन हमें तो
लहुलुहान करें |


खामोश घर
कितनी बातें करे
हमसे सदा
हम ढूंढते लम्हे
दीवारों पे लिखे |

कर लें  बन्द
द्वार तो ही जाती
हवा चंचल
प्रगति की देखो तो !
झांकती झरोखे से |

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

हाइकू - 22


सम्मान नहीं !
पर मन खुश है
ये कैसी खुशी ?

अपमान से ?
चेहरा जर्द हुआ
ये कैसा जीना ?

निशब्द बाण
सी मुस्कान उसकी
चुभी मन में  ?

पहचाना है ?
क्या कभी किसीने
तेरा वजूद ?

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

छोटी कवितायेँ - 3


 शैतान बच्चे

स्कूल की घंटी बजते ही
सूरज भागा
बादल दौड़ा आया
लगा बरसने
नाचने
नगाडा बजाने
फ्लैश मारने
बच्चे , शिक्षक हैरान
देख उनकी शैतानी |


कठोरता
    
क्रोध
कठोर करे
मनुष्य को
गलतियाँ असह्य हो जाएं
बच्चों की
विद्यार्थियों की तो
शामत आये
कुछ तो सुधारें ही वे
पर क्रोधी का तो
खून ही जल जाए |

बुधवार, 22 अगस्त 2012

मूरख


औरत !
कहना मानती हो
मोहल्ले में प्रशंसा करती हो
पुत्र पुत्रवधू  की
पर
शिकायत करती हो
तुम
बेटी से
प्रति दिन
पुत्र पुत्रवधू की |
ए औरत !
तू समझना न चाहे
निज बेटी को
तो न समझ
एक दिन तेरे इस 
कुचक्र में
तू ही जलने लगेगी
जब चेत जायेगी 
तेरी बेटी |
औरत !
तेरी बेटी ही तेरी शक्ति है
तेरी आवाज है
तेरा मान है
सूंघ ले
खुशबूदार आकाश  
प्रतिरूप है तेरी ही 
जी ले रे मूरख
एक बार फिर से |

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

छोटी कवितायेँ - 2


 एक प्रश्न
 
मूलभूत सुविधा के अभाव में
कितने दिनों तक
मनुष्य सजीव रख पायेगा
अपनी नैतिकता ?
झकझोरता है
एक प्रश्न
अस्तित्व को !
आखिर
दोष
किसका ?


  जी ही लें

चार दिन की जिंदगी
इतने झमेले
चलो जी ही लें
कुछ पल
सत्य सही
स्वप्न ही देख लें
जो दिखाते हैं
हमें
हमारे नेता |

छोटी कवितायेँ - 1

   धूप छाँव  

नहीं सुहाती
हर आने जाने वाले के सामने निज पुत्र गुण गाती
मुश्किल से चल सकनेवाली
बेटी संग रहनेवाली माँ  |
   

पुत्र और पुत्रवधू का आगमन
कलेजा चौड़ा कर देता है  माँ का
आखिर बेटा आया है सपरिवार
कितनी मान की बात है |
पुत्र की गलतियां निकालने का सत्साहस
एक बहुत बड़ा मानसिक बल है
जिसका अभाव है
महिलाओं में |

आजीवन भाईयों भाभियों
माता पिता के कलेजे पे
मूंगदलती काया ने चोला छोड़ा
....खाली कर दिया
मैंने तुम्हारा कमरा ......
इतना ही निकला मुंह से
और प्राण पखेरू उड़ चले |

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

क्षणिकाएं - 3


सन्नाटा
जब करे भांय भांय
यूँ लगे
जमीन तैयार हो रही है
सृजन की
शायद यादों के बीज पड़ेंगे
और कल्पवृक्ष लगेगा
सांस रुकी हुई है
उस वृक्ष की शोभा देखने को |


सुरक्षा करते करते
सरहद कब नींव बन गयी
पता ही चला उसे
आज हैरान है वो
खुद पर
और अपने स्थान पर |

स्वाधीनता दिवस


सफ़ेद यूनिफॉर्म में
सुबह के धुंधलके में
बस स्टैंड तक
बच्चे पहुंचाती माँ को भी
आज का दिन
अनोखा लगने लगता है
फिर आज तो बच्चे राजा हैं |
बच्चों से भरी
विभिन्न विद्यालयों की बसें
एक के बाद एक
पीं पीं ......हार्न बजाती
गुजरने लगती हैं
तो बिस्तर में सोये पिता
बौखला उठते हैं ..
ओफ्फ !
पौ फटी नहीं कि
रंग बिरंगी झंडियों से सजा 
विद्यालय का प्रांगण
छात्रों और शिक्षकों के कोलाहल से
गूँज उठता है |
झंडोत्तोलन के बाद
राष्ट्र गान
मार्च- पास्ट
भाषण , गीत , कविता पाठ
हुआ नहीं कि
भर जाती हैं बच्चों की मुठ्ठियाँ
लड्डूओं से |
बसों में बैठ बतियाते
घर लौटते ये बच्चे
खुद को कुछ खास समझने लगते हैं
शिक्षक भी
क्यों कि इस सात बजे के समय लोग
उन्हें रोज की तरह
घरों में ही दिखाई देते हैं
सच कहूँ
मोहे भावे
विद्यालय का स्वाधीनता दिवस |

शिक्षक जी


आपकी नैतिकता का पाठ
शिक्षक जी
विद्यालय में ही
पाए शोभा
जिंदगी में नहीं |

जिंदगी भर के
परिश्रम से
एक घर ठोंक सके
शिक्षक महोदय आप
देखो दिहाड़ी मजदूर ने
ठोंका घर
चाहे जैसे भी
यह सोंचने का विषय नहीं आपका |

सोमवार, 13 अगस्त 2012

हाइकू - 21


राज्य क्यूँ बांटें
जनसँख्या घटाएं
हम अपनी |

ललकारा है
ईमान को तुमने
अब फल ले |

मैं हूँ सवार  
आज समय पर
न पुकार तू |

सम्हलो तो
बिगड़ैल घोड़ा सा
वक्त पटके |

पन्द्रह अगस्त




इंतज़ार है
पन्द्रह अगस्त का
जब लगेगी प्रभात फेरी बच्चों की |
हम घबरा कर
उस दिन निकलेंगे
बिस्तर से सबेरे सबेरे |
बच्चों का जूनून
देख
दिल हुलस उठेगा |
जल्दी जल्दी नहा धो कर
बैठना होगा
दूरदर्शन के सामने |
तिरंगा
फहराना होगा
घर के छत पे |