बुधवार, 30 मार्च 2016

महाभारत



-इंदु  बाला सिंह

आईना दिखा देती है   बहू
बेटे की बदौलत सुख संसार का स्वप्न देखनेवाली माँ को   .......
कन्यादान का पूण्य नहीं काम आता है
जब मचाती है बहू  ....... घर में महाभारत । 

माइक के चोंगे से सजी बोलरो




- इंदु बाला सिंह


होल्डिंग टैक्स की अदायगी के लिये अनाउंसमेंट हो रहा था -
टैक्स अदा करें आज बारह बजे तक अन्यथा म्युनिसिपलिटी की तरफ से कार्यानुस्थान  किया जायेगा .. ....
मेरी आँखों के सामने से जंग लगी ...... माइक के चोंगे से सजी बोलरो गुजर गयी   .......
नन्हा बोल पड़ा   -
सड़क पर इतनी पुरानी गाड़ी चलना मना है न मम्मी । 

मन भागे



- इंदु बाला सिंह

ब्याहता बेटी का ...... न कोई मां ....... ना बाप .........
स्वार्थ का सब संसारा
मोह धागे में बंधा मन ...... भागे ... आशा संग .......
तृषित आँखे ..... खोजें .....
पार्क के दौड़ते बच्चों में ....... बचपन ...... खोया अपनापन ।

मंगलवार, 29 मार्च 2016

कामवाली खुश है




- इंदु बाला सिंह


आज कामवाली खुश है
वह बार बार रट रही है
वह आदमी बोल रहा है - आपका बेटा बहुत बड़ा आदमी बनेगा। .. उसे मेरे साथ बंबई जाने दीजिये   ...... बंबई जाने के लिये लोग तरसते हैं   ......
और मैं सोंच रही हूं - आखिर मैट्रिक पास लड़का अंजान शहर में अपनों से दूर कैसे रहेगा   ......
पर कामवाली खुश है । 

शनिवार, 26 मार्च 2016

जड़ें जरूरी हैं



- इंदु बाला सिंह




आदमी को जीने के लिये
जड़ें जरूरी होती हैं
वर्ना
वह तड़पता रहता है   ...... भटकता रहता है
प्यासा ही रह जाता है वह   .......  सगों के... अपनों के मान का   ...पहचान का  । 

बुधवार, 23 मार्च 2016

ये लो ! काट ली मैंने पतंग



-इंदु बाला सिंह


एक ई मेल पर  क्लिक से
उड़ी मुन्ने की पतंग
और
चलने लगा दांव पेंच
पतंग काटने का  .......
यह काटा  ..... अरे रे रे काटा ....... लो कट गयी पड़ोसी की पतंग   .......
मुन्ना किलक उठा  ...... अहा ! मैं राजा हूं  |

गांव से कितने दूर हैं हम


-इंदु बाला सिंह


' गांव ' एक खूबसूरत शब्द है 
शहर में खूब चलता है यह शब्द
शान बढ़ती है हमारी किस्से सुना के ......... अपने गांव के
यह अलग बात है
कि
हमारा कोई पैतृक निवास नहीं होता गांव में
गांव की धूल और खेत से अपरिचित रहते हैं हम
पर शान से सुनाते हैं हम
किस्से
अपने गांव के ..........
हैरान हो जाती हूं मैं
देख के
युवा दंपत्ति को भी सुनाते ...... रीति रिवाज के किस्से ...... गांवों के .......
गांव हमारी नीव है......... पहचान है
तो क्यों कटते हैं हम
अपने गांव में बसे पुश्तैनी रिश्तों से ......
क्यों लटकते हैं किसान पेड़ों से
आखिर क्यों छलते हैं हम खुद को
दूसरों को ......
नई पीढ़ी को मोह है गांव का
पर
दूरी बन गयी है अब गांवों से
हमारे बच्चों की .......
आज कहानियों में बसे हैं गांव
मेरे बच्चों के ..........
कहीं ..... कुछ तो गलत है
कि
खेतों से दूर जा रहे हैं हम .......
विकास  ...... परिवर्तन की  आंधी के नाम पे
मैं गई शहर
और
मेरे बच्चे ...... रसोईं का भोजन ........... मसालों की खुशबू छोड़
विदेश जा रहे हैं
डिब्बे का भोजन और ब्रेड खा रहे हैं .........
काल्पनिक गांवों के....... किस्से सूना रहे हैं ......
.................
.........
विचारमग्न है जी
खुद की गलती मानने का मनोबल को तलाश रही हूं
लौटा लाने की चाह है
वापस अपनी संतानों को
अपनी जमीन पे
कि
मिट्टी की खुशबू पुकार रही है ...........
जड़ें मांग रहीं हैं ...... पानी ........... खाद ।

मंगलवार, 22 मार्च 2016

जलाने का सुख



- इंदु बाला सिंह



जलाने में आता है कितना आनद
जरा बच्चे से पूछो न
माचिस की डिबिया मिली नहीं कि एक एक तीली जला के पाता है वह आनद ......
फिर
जलाता है वह कूड़ा
जलती आग
समाप्त करती है उसका भय आग से   .........
आनंद  आने लगता है उसे
जलाने में
जो न मन भाया   ......
जिस पर क्रोध आया
जला दिया
सबूत भी मिट गया .......
कितना सुख मिलता है हमें ........ अनचाही वस्तु जलाने में   ।

कब तक जलती रहोगी तुम



- इंदु बाला सिंह

कब तक बैठती रहेंगी होलिकायें आग में
गोद में ले  प्रह्लाद को  .....
जीतीं हैं  ........
मिटती  हैं घरों में
आज भी ..... होलिकायें  ।
...........
 .........
ओ होलिका !
आखिर कब तक जलोगी तुम
क्या यूँ ही मिटती रहोगी सालों साल |

अंधियारे का सन्नाटा



- इंदु बाला सिंह


चलना है सन्नाटे में
अंधियारे में
डूबे हुये ......  खोये हुये   ...... अपने में  ......
कि
थका है   ........ चिंतित है  .....
आज मन
आखिर कब तक !
आखिर कब तक चलना है यूँ ही सन्नाटे में   ...........  अंधियारे में  .......
सन्नाटे की ताकत गजब की है
थकता नहीं
पर
ऊबता है जी  .......
मौन
चिरंतन है मौन  ........
अनुत्तरित हैं दिशायें आज भी
आखिर क्यों ?
आखिर कब तक मौन रहेंगी दिशायें । 

दिन अभी बाकी है




-इंदु बाला सिंह

चल उठ कि दिन अभी बाकी है
कहानी अभी बाकी है .........
आग अभी सुलग रही
जरूर  कोई चिंगारी दबी होगी राख की ढेरी में   । 

शुक्रवार, 18 मार्च 2016

शक्ति



- इंदु बाला सिंह


प्रकृति से बड़ी
कोई 
शक्ति नहीं
वह शून्य में मिले
या
स्वयं में । 

गवाह नहीं होते मानसिक युद्ध के




-इंदु बाला सिंह

सैनिक हूं
पर हथियार नहीं  हाथ में ..........
गवाह नहीं होते मानसिक युद्ध के
बस मानसिक संतुलन की बदौलत जीत ही लेती हूं
हर छोटे छोटे युद्ध । 

गुरुवार, 17 मार्च 2016

मैं गरीब हूं



-  इंदु बाला  सिंह


मैं
गरीब हूं  .......मजदूरनी  हूं
यह बात आज मैं खुशी से कह  सकती हूं  .......
मैं आज में जीनेवाली प्राणी हूं
बीता कल देख चुकी
आनेवाले कल की चाह नहीं ...........
मैंने कितनों के स्वप्न महल की नींव डाली
कोई गम नहीं
कि मैं खुद छत हीन हूं   .......
खुश हूं
क्यूं कि मैं गरीब हूं  ....... अभावग्रस्त हूं  ...... आत्म निर्भर  हूं ।
  

खेलती तू तो आँख मिचौली



-इंदु बाला सिंह

ओ री दुनिया !
हर सुबह पढ़ती हूं तुम्हें
नित नये पन्ने दिख जाते हैं
और मैं कौतुक पूर्ण नेत्रों से देखती रह जाती हूं तुम्हें   ..........
ऐ री दुनिया !
ओ रंगीली ! ....... खेलती तू तो आँख मिचौली   ........
मनभावन है तेरी हर अदा
रहना तू ......... ऐसी ही सदा  । 

जय हो तेरी चूहे !



- इंदु बाला सिंह

घर के बड़े बूढ़े न कर सके जो काम
वह कर दिखाया एक छोटे चूहे ने ......... घर व्यवस्थित हो गया ...... सुघड़ हो गया ...... जय हो तेरी चूहे ! तू महाबली ।

मैं चुप रहती हूं



- इंदु बाला सिंह

घर में
मना है हंसना मुझे
अनचाही अस्तित्व हूं मैं
बेटी हूं न
इसलिये ...... मैं चुप रहती हूं |

हम आदिमानव बनते जा रहे हैं



- इंदु बाला सिंह

घर में पनपे
जब
राजनीति
और
लगें पेड़ झूठ के
तब
घर की परिभाषा ही बदल जाती है   ........
घर के सदस्य अंधाधुंध दौड़ने लगते हैं    ........
यह अंधी लक्ष्यहीन ईर्ष्यालु प्रतिस्पर्धा जीवित कर देती है पशुता घर के सदस्यों में   ...........
गजब है
न जाने क्यूं
यूँ लगने लग रहा  है
हम आदिमानव बनते जा रहे हैं
दिमाग , सहिष्णुता , रिश्ते की कोई  मर्यादा ही नहीं  ...........
हर कोई रेंक रहा है   ......... मैं  .... मैं  । 

रविवार, 13 मार्च 2016

अनोखी शिक्षिका



-इंदु बाला सिंह

नर्सरी कक्षा के दरवाजे के बाहर खड़ा था
एक नंग धड़ंग बच्चा   .....
और
मेरी सिट्टी पिट्टी गुम   ...........
यह
कैसी सजा थी  ........
कैसा वातावरण था ...........
कैसा हृदय था शिक्षिका का  ...........
जो न दीखता था
किसीको  ।  

शुक्रवार, 11 मार्च 2016

अभाव का ईंधन



-इंदु बाला सिंह


लड़कियों
निकलो सड़क पे
हर दिन  कम से कम एक बार  निकलो सड़क पे
दिन या रात का परवाह किये बिना ..... बस निकलो तुम अपने घर से
आजाद हो जाओगी तुम
पर यह याद रखना तुम सदा विचारों की आजादी मिलेगी तुम्हें
तुम्हारी आर्थिक आत्म निर्भरता से    .........
उड़ो लड़कियों !
उड़ो कि यह आकाश तुम्हारा  है ......... हर सफल जीवधारी का है   ......
अभाव का ईंधन खत्म होने तक कर लो सैर । 

वरदान है अभाव


11 March 2016
13:46

इंदु बाला सिंह



अभाव में रचनात्मकता है ....चिन्तन है ......
पर
मनोबल तगड़ा होना चाहिये
तो
क्यों न मानूं मैं  वरदान अपने अभाव को |

गुरुवार, 10 मार्च 2016

ईश्वरत्व


11 March 2016
08:36

-इंदु बाला सिंह


नेकी कर के
हम याद रखते हैं
याद दिलाते हैं इश्वर को
कहते हैं - बहरा है ईश्वर ..............
आखिर क्यों नहीं भेजते वे किसी को हमें उपहार देने के लिये |
पर
भूल जाते हैं हम
वह अहसास जो हमने पाया था नेकी करते वक्त
भले ही पल भर के लिये
हमारे मन में सोया ईश्वरत्व जागा तो था |

आखिर क्यूं उड़ाना चाहते हो तुम


11 March 2016
07:13


-इंदु बाला सिंह



फूंक से उड़ाने के तुम्हारी आदत ने
अंधी कर दी तुम्हारी आंखें
और
झुलसा दिया तुम्हारा मुंह .....
अब मुंह छुपाये घूमते   हो
आखिर क्यूं उड़ाना चाहते हो तुम सबको
अपनी फूंक से |


अतृप्ति


11 March 2016
07:40



-इंदु बाला सिंह




अपमान और अभाव के आक्रोश से भरा मन
जलता है रेगिस्तान सा ...........
हैरत होती है
आखिर क्यों नहीं बुझती है यह आग
यह कैसी अतृप्ति है जो राख नहीं बनती |

सोमवार, 7 मार्च 2016

कैसा मान महिला का



- इंदु बाला सिंह

ड्राइंग रूम और पार्टियों के मुद्दे होते महिला दिवस
फिर
अपने घर में सो जाती हैं ...... बिला  जाती हैं  आम औरतें   ...........
घर में
पिता को नहीं भाती समानता अपने बेटे से
अपनी ही  बेटी की
माता को  न  महसूसता दर्द अपनी बेटी का
तो कैसा महिला दिवस
और
कैसा  मान महिला का ........
अरे !
अपाहिज बना दिया है तुमने बेटी को आरक्षण दे के  .......
तुमने उसे महसूस कराया है  ........  विश्वास दिलाया है
कि
वह दुर्बल है .......
वर्ना
वह भी खूब समझती है दुर्बलता पुरुषों की
जो राज करता है
औरत  की दया ... करुणा के बल पे  ......
और
शोषण करता है
अपनी निकटस्थ कमजोर स्त्री संबंधी का । 

शुक्रवार, 4 मार्च 2016

इंद्रधनुषी रंग



-इंदु बाला सिंह


दे दो आजादी
बेटी  को उड़ने की
अपने ही आँगन में .... फिर देखो ..........
इंद्रधनुषी हो गया है आकाश और समंदर
वैसे
लोग कहते हैं ....... खुशी और मुस्कान एक छूत की बीमारी है । 

गुरुवार, 3 मार्च 2016

हमारे बच्चों के सपने



- इंदु बाला सिंह


कुछ करें  स्कूलों , कालेजों में हम ऐसा
प्रतिभावान छात्र पढ़ें .... विषय का ज्ञान अर्जन करें   ......
अरे !
दुनियादारी सीखने को तो धरा है सारा जीवन ...
आखिर क्यों अवरुद्ध करें हम नदी की धारा
और
मोड़ें
उसे
अपने खेतों की ओर   ......
प्रतिभा को फूलनें दें हम
देश शक्तिशाली बनता है नित नये अविष्कारों से   ....
क्यों न सपने देखें हमारे बच्चे  चांद  पर   बस्ती  बसाने की । 

बुधवार, 2 मार्च 2016

गजब की आग



- इंदु बाला सिंह



होती  कितनी कठिन है चढ़ायी
पठार   की
और
गजब की आग होती है मन में पहचानने की दुनिया को ......... नया कुछ कर गुजर जाने की ।