- इंदु बाला सिंह
यूं लगता है
ट्रेन में बैठे हैं हम
घटनायें ...... हिचकोले दे रहीं हैं
कभी जोर से ...कभी धीरे
कहां जा रही है ट्रेन ! ..... समझ ही न आ रहा
लोग दिख रहे हैं ...... खिड़की से
शहर से ही गुजर रही है जरूर
पर कौन से शहर से गुजर रहे हैं हम पता नहीं
गजब की अनुभूति है
जो चाहते हैं हम
वह हमें मिलता नहीं
और
जो मिलता है
उसे हम चाहते नहीं ।
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