मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

गजब का अभाव



- इंदु बाला सिंह

यूं  लगता है
ट्रेन में बैठे हैं हम
घटनायें  ...... हिचकोले दे रहीं हैं
कभी जोर से ...कभी धीरे
कहां जा रही है ट्रेन !  ..... समझ ही न आ रहा
लोग दिख रहे हैं   ...... खिड़की से
शहर से ही गुजर रही है जरूर
पर कौन से शहर से गुजर रहे हैं हम पता नहीं
गजब की अनुभूति है
जो चाहते हैं हम
वह हमें मिलता नहीं
और
जो मिलता है
उसे हम चाहते नहीं ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें