रविवार, 28 फ़रवरी 2016

गली का आवारा



-इंदु बाला  सिंह

सूंघ कर  ........  देख कर   .......  चोर पहचानूं
गली में घुसने न दूं कोई अजनबी
घरों की बची रोटी से पेट भरूं
रक्षक हूं गली का
फिर भी
कहलाऊं  मैं ....... आवारा ....... कुत्ता । 

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