गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

शाप या दुआ


-इंदु बाला सिंह


नियति के खेल निराले 
कभी जीते
तो
कभी हारे .......
गर फलित होती
शाप या दुआ
क्या मिट न जाती गरीबी ........
वसंत ऋतू में गमकते सभी घर |

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