शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

और मैं गुमनाम रह गयी




- इंदु बाला सिंह



गरीबी एक ब्रांड है
खूब बिकती है इसके नाम पे रचनायें
जब कलम उठायी लिखने को
पर चली न कलम
वह भी बन गयी  मूक ...... गरीब की तरह
भावना की श्याही सूख गयी गरीब घर के मुखिया सी
गरीबी का ब्रांड चलाना भी एक कौशल है  .......
फिर सोंचा मैंने
लिखूं ......... महिला रुदन पे
लेखनी चल न पायी
हंस कर बोली वह -
आजीवन खुद को मर्द समझ के जीनेवाली
आज किसे तू धोखा देने चली
अरे ! छोड़ दे न कुछ मुद्दे औरों के लिये  .........
और मैं गुमनाम रह गयी । 

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