11
February 2016
09:15
-इंदु बाला
सिंह
क्यों न खुद
को तौलें हम
आखिर कैसी
नींव डाली हमने
कि
विभिन्न
नामधारी अकेली बेटियां.... बिसुरें ....
मनहूस कहलायें ..... शुभ महोत्सव में अवांछित रहें
पर बेटे पर
कभी कोई रोक टोक नहीं
आखिर क्यों
.......
क्यों गलती पर
गलती करती जाती हैं
और
सड़क पर मात्र
गिनी जाने योग्य हैं कामकाजी बेटियां
........
भूखी रहती हैं
घरों में उपवास के नाम पे अभाव के कारण
लेकिन जन्मा
जातीं हैं ...... खुद सरीखी देवी कहलाने योग्य घर की रौनक बेटियां |
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