ज्ञान पिपासा
जहां भी ले
जाये मुझे
भूलूँगा न रिश्ते नाते कभी |
वैश्वीकरण
तो ठीक है
पर सदा याद रखूँगा
पहचान है मेरी देश, जाति और
धर्म ही |
मकान तो बहुत बन जायेंगे
घर बनाना आसान नहीं
इसलिए कभी न भूलूँगा घर मैं |
यह मकान है घर मेरा
बातें करती हैं मुझसे दीवारें
कितना
कुछ है सिखलाया इसने |
मैं हूँ इसका एक कानूनन हकदार
न मिले मुझे यह तो कोई गम नहीं
यह सदा रहेगा मेरा मेरी यादों में |
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