बीमार तन
याद दिलाये कल
है वो निरीह
क्या पता
क्या ताकता
कल का अग्नि-पुंज |
वक्त से युद्ध
में घायल
सिपाही
पड़ा घर में
कराहे निशदिन
देख
जरा विधान |
क्या करूं भाई
!
बुढापे में
बीमारी
नर्क में ही
हूँ
स्वावलंबन गया
न भोगे
कोई ऐसा |
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