बुधवार, 30 मई 2012

हायकू - 14


तेरही बीती
मित्र आये पुत्र के
पुत्री पत्थर |

वाह रे पिता !
दिखाया रूप तूने
भूला बेटी को |

नित क्यों मारे
इससे भला माते !
कोख में मार |


कैसा पिता है !
किया तुने भिखारी
निज पुत्री को |

हायकू - 13


दसरथ सा
बांधा निज को मैंने
दिया वचन |

वक्त सिखाये
हमें लचीला होना
साख रखना |

आधा अनंत
तुमने छीना है जो 
वो तो मेरा है |

पहचानूँ मैं
घर , बाहर ,जग
तू क्या सुझाए |

मंगलवार, 29 मई 2012

तांका - 2


माँ अच्छी होती
कहानियों में सदा
सत्य में स्वार्थी
यह भोगा यथार्थ
अपचनीय लगे |

 पुत्र ही प्यारा
सम्पति का वारिस
लाज क्या चीज
पुत्री प्यार की भूखी
है पढ़ी लिखी मुर्ख |

रक्त- सम्बन्ध
प्राय: शोषण करे
हमें मिटाए
ये पहेली जो बूझे
वो ही जी ले जीवन |

रविवार, 27 मई 2012

तांका - 1


बीमार तन
याद दिलाये कल  
है वो निरीह
क्या पता क्या ताकता
कल का अग्नि-पुंज |

वक्त से युद्ध
में घायल सिपाही
पड़ा घर में
कराहे निशदिन
देख जरा विधान |


क्या करूं भाई !
बुढापे में बीमारी
नर्क में ही हूँ
स्वावलंबन गया
न भोगे कोई ऐसा |

शनिवार, 26 मई 2012

हायकू - 12


तेरी जीत पे
ज्यों ही कूकी कोयल  
मैं नाच उठी |

ली ईश से
जब मैं अहसान
तुझसे क्यों लूँ |

छूने को चन्द्र
है सागर विह्वल
उड़े मन भी |

सांवली रात
मन की पीड़ा हरे
चित्त हो शांत |

लड़ाई - घर की


संग संग खेले
बड़े हुए
एक घर में
किस्मत दोनों की अलग
ये कैसा अन्याय
समाज का |
चल हम दोनों लड़ें
इसी घर में
इस समाज से
एक सरीखे हक
मान छीनें
रिश्तों से |

हायकू - 11


तेरी हार में
है किसी का आनन्द
किसी की जीत |

योगी का मन
कर्मक्षेत्र में लीन
कब भटके !

जग रुके
निज भी तड़पे
निज के लिये |

डिग्रियां खोंस
फूलों संग बालों में
इठलाई वो |

शुक्रवार, 25 मई 2012

हायकू - 10


सन्नाटा आज
मुखरित हो उठा
बहा निस्पंद |

तू ढूंढ प्यार
अपनापन सदा
अपनों में ही |

रुदन तेरा
मिटा देगा महल
मुस्कुरा जरा |

आशाएं जन्मीं 
पल्लवित हुई  हैं 
महलों में ही |

हायकू - 9


कुछ तो चाहे
प्रतिदान श्रम का
मानव मन |

न कर मान 
वक्त डरे तुझसे
बांध तू मुट्ठी |

स्वप्नदर्शी ही
सदा करते श्रम
छूते आकाश |


नाव न बाँधो
आज नाविक तीर
जाना है दूर |

गुरुवार, 24 मई 2012

हायकू - 8


तपती धरा
तरसे पानी को
देखे आकाश |

वर्षा रानी जी
नित पुकारूं तुझे
कब आओगी ?

आंधी आओ जी
वर्षा के संग जरा
सड़कें धुलें |

दिन कटे
बिजली छोड़ी साथ
वर्षा जा ना |

मंगलवार, 22 मई 2012

हायकू - 7


मौका मिला है
पिता के कान धरूं
डालूं मैं तेल |

पकड़ने में
कितना मजा आया
पिता का कान |

कविता लिखी
सुन्दर सी पिता ने
पुरस्कृत मैं |

यादें आती हैं 
मैं लाडली बेटी हूं
पिता तेरी ही |

बुधवार, 16 मई 2012

हायकू - 6


मूर्ति सरीखे 
बस पूजे जाते वे
पुत्र गृह में |  


होड़ है कैसी
लगी दिखाने की
मुझे माँ प्यारी |

पढ़ाई सदा
प्रतिफल बड़ों के
तप त्याग से |

तू ऐसे गयी 
जी न भींगा क्या तेरा
जा क्षमा किया |

बुधवार, 9 मई 2012

मकान है घर


ज्ञान पिपासा
जहां भी ले जाये मुझे  
भूलूँगा  न रिश्ते नाते कभी |
वैश्वीकरण तो ठीक है
पर सदा याद रखूँगा
पहचान है मेरी  देश, जाति और धर्म ही |
मकान तो बहुत बन जायेंगे
घर बनाना आसान नहीं
इसलिए कभी न भूलूँगा घर मैं |
यह मकान है घर मेरा 
बातें करती हैं मुझसे दीवारें
कितना कुछ है सिखलाया इसने |
मैं हूँ इसका एक कानूनन हकदार
मिले मुझे यह तो कोई गम नहीं
यह सदा रहेगा मेरा मेरी यादों में |

मंगलवार, 8 मई 2012

मौन भ्रूण


सब कुछ है
नियोजित इस घर में
तेरी एक बहन आ चुकी  है
मेरे पास |
मैं नहीं ला सकती
इस दुनियां में तुझे
जाना ही होगा तुझे मेरी कोख से
या
बोल 
क्या मैं भी जाऊं बाहर तेरे साथ घर से |
जरुरत है 
एक अदद बेटे की
इस घर को
अगर कभी वह आया
तो उसे बेटे बेटी में फर्क माननेवाला बनाउंगी मैं |
बिटिया मेरी !
तू ही बता मैं क्या करूं ?
यह तो इतिहास गवाह है
आजादी  शहीद की नींव पर खड़ी होती है |
क्यों बताया चिकित्सक नें
तेरे अस्तित्व को ?
नहीं तो ही जाती तू
मेरी दुनियां में |
कल चली जायेगी
मेरी कोख से तू
मैं स्वगत कथन करूंगी
प्रतिदिन अकेले में |
तू भी कुछ बोल
चुप क्यों है ?
तुझे न भूलूंगी कभी मैं 
तूझे जन्म न दे पाने की दोषी हूँ 
मैं भी |

शनिवार, 5 मई 2012

हायकू - 5


इमानदारी
काम का मूलमंत्र
मान ले आज |

सपना तेरा
पहुंचायेगा तुझे
सिद्धि के पास |

चाह मैं तेरी
रहूँ मैं दिल में तेरे
ढूढ़ के देख |
 
जीत मैं तेरी
खोल दे दरवाजा
भोर है हुयी |

हाइकू - 4


आस जगा दे
मन में मेरे प्रिय
देखूं मैं राह |

घर है सूना
तेरे बिन घरनी
भी जा आज |

पर्दा हटायें
घर का देखो आज
अपने नाते |

राज की बातें
बताएं पड़ोसिनें
तू भी सून ले |

गुरुवार, 3 मई 2012

हायकू - 3


रात का भूला 
आया है घर लौट
भागवान तू |

पसीना बहा
मजदूर बनाये
तेरा मकान |

देश से तेरी
पहचान बूझ ले
कहाँ भागे तू |

सागर कहे
बैठ हरूँ ताप
तेरे मन का |

हायकू - 2


रोती सूरत
भाये कुछ लोगों को
महिलाओं की |

भोर गर्मी की
अनुशाषित करे
हम युवा को |

नारी से घर
समाज की रीढ़ वो
भूल कभी |

माता पिता हैं
बरगद की छाँव
याद रख तू |

हायकू - 1


गर्म खाती थी
गर्म खिलाती थी वो
बासी खाती है  |

समय बली
सबको छले वह
कोई बचे |

पैसा बड़ा है
सबसे रे भईया
कौन हो तुम ?

दुःख- धुप में
पला बढ़ा बना तू
आम का वृक्ष |

नारी


नारी !
तू तब तक अबला है
जब तक तू ढूंढती सहारा
सबल का |
तेरे अंदर ही है आग
आत्मविश्वास की
कोई नाता नहीं तेरा |
जीवनसाथी है
तेरा मित्र
पर नहीं सदा सहारा |
तुझे सुख- सुविधा पहुंचाने को
है आतुर तुम्हारे कष्ट मिटाने को
घिस रहा दिनों- दिन वो |
कोंच उसे
बाप भाई का गुण गा
और कर उसका अपमान |
मात्र पितृत्व का सुख दे उसे
तू नहीं हकदार
सदा अपनी सुविधाओं की |
अर्थ उपार्जन है 
तेरा भी कर्तव्य
हक है तेरा भी पिता की सुविधाओं में |
किसी की सौम्यता का
दुरूपयोग भी है
एक पाप |
नारी तू सदा है
सबला
देश तेरे साथ है |




बुधवार, 2 मई 2012

अंकुर


किसी का दिमाग मारने से बड़ा
अपराध कोई नहीं |
समय देगा सजा
उसकी |
मजबूरी जो कराये वो थोड़ा
पर आदमी वही जो शोषित का मन पढ़े |
अब कोई अभिमन्यु प्रवेश करेगा चक्रव्यूह में
जिसे ज्ञान हो बाहर निकलने का |
पिता का विलाप
नाश लाएगा धरा पर |
आईये गरीबी को आभिशाप
वरदान बनाएँ हम |
अभावग्रस्त को
अब राह दिखाएँ हम |
प्रतिभा अंकुरित  होती कम जल में
क्यों न उसे वृक्ष बनने का साधन जुटाए हम |

मंगलवार, 1 मई 2012

निर्बल


क्षमा 
भूषण सबल का 
और 
निर्बल का हथियार 
जिसने किया आवेश को वश में
उसने 
जीत लिया संसार 
प्रतिशोध कभी  लेना 
अपने शत्रु से 
वर्ना गल जायेगा तेरा शरीर 
ओ निर्बल !
समय और परिस्थिति की आंच में तप
देखना 
तू एक दिन बन जायेगा फौलाद |