पति
के नौकरी छुटते ही
चरमराने लगता है घर का ढांचा |
इसमें कहीं न कहीं पुरुष का अहं है
जो उसे पत्नी को बैठा कर न खिला पाने से चूर होता है |
पता नहीं क्यूँ नहीं समझता वो
कमाना है दोनों का दायित्व |
जब बेरोजगार होता है एक तो
सम्हालता है दूसरा |
पति - पत्नी दोनों हैं पूरक
एक दूसरे के |
एक का स्वार्थ दूसरे का ही नहीं
संतान का भी बहुत कुछ बिगाड़ता है |
औलाद कितना कुछ खोती है
पुरुष के गलत निर्णय से |
पुरुष सत्तात्मक समाज में
स्त्री तो मात्र मजदूर है |
अपने बनाए झूठी शान के जाल में
घुट कर स्वयं ही दम तोड़ देता है |
मैं हार गया कह कर
मुक्त हो जाता है वो छोड़ कर सबको |
ए
कैसी समझ है
मुझे समझ नहीं आती |
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