मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

ए कैसी समझ


पति के नौकरी छुटते ही
चरमराने लगता है घर का ढांचा |
इसमें कहीं कहीं पुरुष का अहं है
जो उसे पत्नी को बैठा कर खिला पाने से चूर होता है |
पता नहीं क्यूँ नहीं समझता वो 
कमाना है दोनों का दायित्व |
जब बेरोजगार होता है एक तो
सम्हालता है दूसरा |
पति - पत्नी दोनों हैं पूरक 
एक दूसरे के |
एक का स्वार्थ दूसरे का ही नहीं
संतान का भी बहुत कुछ बिगाड़ता है |
औलाद कितना कुछ खोती है
पुरुष के गलत निर्णय से |
पुरुष सत्तात्मक समाज में
स्त्री तो मात्र मजदूर है |
अपने बनाए झूठी शान के जाल में
घुट कर स्वयं ही दम तोड़ देता है |
मैं हार गया कह कर
मुक्त हो जाता है वो छोड़ कर सबको |
ए कैसी समझ है
मुझे समझ नहीं आती |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें