बुधवार, 11 अप्रैल 2012

मैं सर्वोपरि


भाती है
कुटिल को निश्छल हँसी |
उससे ज्यादा भाता है
वह व्यक्ति |
कितना आता है आनंद
उसे गुलाम बनाने में |
ज्यादा मिलती है तृप्ति
उसके बहते आसुओं को देख |
अन्यथा इतने अपराध होते
अपना अहं तुस्टीकरण में |

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