बुधवार, 25 अप्रैल 2012

बचपन की दौड़


गांव में छोड़ परिवार
पढायी करने चले गए थे पिता |
शहर के मकान में
रहना पड़ गया उसे सपरिवार कुछ दिनों के लिये |
दस वर्ष के हमउम्र चचेरे भाई ने सिखाया
चल चलते हैं गांव ..वहाँ आज शादी है |
चल कर जाने में लगता है एक घंटा
और वे दौड़े गांव की ओर बिना बताए बड़ों को |
भागे वे रास्ते में ही पकड़े जाने का था भय
.....और वे बेतहाशा  दौड़  रहे थे |
बच्चों की बुद्धि भी क्या होती है
खेत के बीच से वे बस  दौड़ रहे थे
कटे गन्ने के कहीं खेत थे तो कहीं ऊँची नीची मिट्टी |
कान में बाजों की धुन थी
मन में था पकड़े जाने का भय |
वे दोनों भाई बहन तो
बस भाग रहे थे |...
पीछे से गरजदार आवाज गूंजी
..कहाँ भाग रहे हो ?
चलो घर तो बताते हैं
टांग पर टांग धर कर चीर देंगे ....थे पकड़े गए वे |
भेड़ों की तरह चले शहर वापस
पीछे पीछे पैदल  चले चाचा साईकिल पकड़ अपनी |

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