कितना भटक रहा है आज मन
...सदा बड़ों का कहना सुनना चाहिए
उनकी इज्जत करनी चाहिए ....
पर वे भी स्वार्थी होते हैं
जब तक पता लगता है
तब तक हो चुकी होती है देर
और हम ... उनके गलत निर्णय के शिकार...
हमेशा
जूझते रहते हैं
समस्याओं से आजीवन |
आखिर
भूल कहाँ कब हुयी
नयी
पीढ़ी को क्यों दोष दे
...ये अपने मन की करते हैं
रिश्तों की तो वे कद्र ही नहीं करते ...
दोष
नहीं दे सकते हम उन्हें
कुछ तो है आज
के युवा में
जो
न था हम में
और आज हैं हम
बीमार
खोजते
हैं स्वप्न में भी अपनों का प्यार |
अपनी खाट को ही अपनी दुनिया बनाए
निकलते हैं घर से बाहर शान से
गुण गाते अपनों के वैभव के
इतना छद्म
जीवन
हर पल घुटता
है मन
....क्या बने हम
ढल अपने बड़ों के सांचे में ....
क्यों न समझ पाए
.....होता है फर्क स्त्री पुरुष में ..... |
कितना भी युद्ध करो
असफल रहती है नारी
अवहेलित रहती पड़ी कोने में
....वह सीमा की योद्धा
अपने रणकौशल को याद करती ....
यह भी क्या जीवन है
न कोई पहचाने न कोई माने
क्या दोष दें सरकार को
हमसे ही तो सरकार है |
हम जब हट जायेंगे
आएगा विपक्ष
नवीनीकरण लाएगा
ये अलग है
उसे महसूसने
न होंगे हम
....कुछ तो बदलाव आएगा
हवा की स्थिरता रही है बता ....
परिवर्तन कुछ तो उन्मुक्त करेगा
आधी आबादी को
देगा उसे उसका हक |