रविवार, 23 दिसंबर 2012

खुशबू




स्वतंत्रता की नींव
आत्मसंयम है
मन का बुद्धि पर हावी होना
पतन का मार्ग है
इस विचारधारा में पले
हम भारतीय
भौंचक्क रह जाते है
विदेश से लौटे भारतीय मूल की जीवन शैली देख |
अपने धन और आजादी का
इतना दुरुपयोग !
मन दुखी होता है
पर वह भारतीय
जो इन्हें
प्रशंसा भरी नज़रों से देखने लगता है
धीरे धीर
खो देता है
अपनी खुशबू |

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

अपमानित पेड़




कल
तुमने मेरी
फल लगनेवाली
मोटी मोटी टहनियों को काट कर
फेंक दिया था
आज
तुम उसी टूटे अंग पर
कपड़ा सुखा दिए अपना ?
मित्र आंधी
स्वार्थी निकल गयी
नहीं तो
उसके सहारे
तुम्हारा कपड़ा
फेंक देता
मैं |

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

रक्त संबंधी


आसमानी !
मैं तेरी रक्त संबंधी
तू मुझे
नभ के स्वप्निल घर में सैर करा
मैं तुझे
जमीनी कंद मूल खिलाऊँगी
यूँ ही
कट जाएगा
हमारा जीवन
एक दूसरे के साथ |

साथी


उसने
फल लगे वृक्ष को
आरी से काट दिया |
...इसे बाहर फेंक दो |
...फल लगा था सर पेड़ में |
वह डर गया
ऐसा करो
इसको यहीं पड़ा रहने दो
फल फूलदार होनहार वृक्ष
वहीं पड़ा
मुरझाने लगा
पास का फूलों से लदा वृक्ष
कसमसा उठा
अपने साथी की दुर्दशा देख
शायद
कल उसके साथ भी ऐसा ही हो !

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

गरूर

सूपर्नखा !
तेरी नाक कटी होती
अगर तेरी एक अलग पहचान होती
रावण की बहन बन
घूमती थी
तू स्वछन्द
वन में
यह गरूर
तेरा मान
ले डूबा |

गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

बुढापा -औरत का


 जमा ही लीजिए बक्सा
कहाँ क्या रखा है
पता चल जायेगा
वृद्ध के मरने से पहले ही
चीजों को समेटना
अच्छा होता है
सबल हकदार को
पीछे  पता ही नहीं चलेगा
उसके पास क्या क्या था |
पैसे की शक्ति अपरम्पार
अपने बनते पराये
सही गलत का ज्ञान विलुप्त हो जाता है
ठीक ही है
जब जाना है जग से
जेहि बिधि राखे राम तेहि बिधि रहिये |

मजदूर


वह
मजदूर है न
इसलिए
भोर होते ही 
खड़े  हो जाना  है
उसे 
मजदूरों की भीड़ में
बड़े लोग आयेंगे
ठीक ठाक दिखनेवाला
मजबूत काठीवाला
मजदूर
चुना जायेगा
और
उसे काम मिलेगा
कहाँ जा कर काम करना पड़ेगा
पता नहीं
भले कड़क आदेश मिलेंगे
बदन टूट जायेगा
पर
काम तो मिलेगा न
तभी तो पैसा मिलेगा
वह यह भी जानता है
पैसे से ही तो
घर है
अरे ! तभी तो रिश्ते भी हैं  |
बूढ़ा
और अपाहिज
होने पर
बड़े लोगों को कोई नहीं पूछता
फिर
वह तो 
मजदूर है |
वैसे
पीना अच्छी आदत है
दिमाग ज्यादा नहीं सोंचता
पर वह
पी नहीं पाता 
घरवालों का निरीह थका चेहरा
याद आता है |
चल रे मन
सो जा |



सोमवार, 3 दिसंबर 2012

मौन


वह
मौन हो गयी थी
अपमानित , सर्वहारा हो कर
और
स्वजन डर गए थे
उसके मौन से
क्या पता
कब चिंगारी निकले
इसलिए
सब कन्नी काटने लगे थे
उससे |

शक्ति बुद्धि की


नाच ले !
बेटा !
जितना चाहे तू आज
देखना है
दम आज तेरे पैर का
और
परखना है ताकत निज मन की
मुझे तो |
जन्मदाता ही बनी दुश्मन
जब आत्मा की
तब जगाना ही है
छिपी ऊर्जा मन की
बुद्धि से बड़ी शक्ति नहीं
जग है अनुगामी बुद्धि का महसूस लो
अब ये  आवाज |

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

खम्बा



खम्बा बन कर तनी थी
वो
और
उसके सहारे
तम्बू तना था
नीचे घर बसा था
खम्बा गिरा
तम्बू
उड़ा
रहने वाले बंदे
चले
अपना घोंसला बनाने |

मोह




अपना जो था ही नहीं
उसका
मोह कैसा !
जब तक बसे थे
साथ था
अब चलूँ
मैं
निज देश |

स्वर्ग




तेरी ऊँचाई
देख ली
सार सार गह लिया
मैंने |
मैं
कथित गरीब
खुश हूँ 
अपने जहां में |
मुबारक है !
तुझे
तेरा
प्रिय स्वर्ग |

टीचर




दीदी  !
कल हमारी छुट्टी
हमारे स्कूल की इंग्लिश टीचर मर गई
बहुत अच्छी टीचर थी ....
हाँ हमारे समय भी पढ़ाती थी वो ....
अच्छा हुआ छुट्टी मिली तुमलोगों को ...
नईईई !
बहुत अच्छी टीचर थी वो
दीदी !
अब हमलोगों को कौन पढायेगा ?....
कोई दूसरा पढ़ाने आयेगा
किसी के बिना दुनिया नहीं रुकती है .....
नहीं दीदी !
वो तो नहीं मिलेगी हमें .....
विद्यालय में काम करते वक्त
कोई जब भगवान को प्यारा होता है
तब खबर आग की तरह
सभी बच्चों में
फैलती है
पूरा शहर जान जाता है
बच्चों की दुनियां पल भर को ठहर जाती है |

रविवार, 25 नवंबर 2012

शहीद की माँ


मेरा बेटा
देश हित मिटा
नाज है
मुझे उसपे
पर
दिल का एक कोना खाली है
जहां मेरी रूह तडपती है उसके लिये
माँ हूँ
पत्थर नहीं
हर वर्ष
जब तुम सब श्रद्धा सुमन अर्पित करते हो उसे
मेरा कोना विह्वल कर देता है मुझे
क्यों तुम सब याद करते हो उसे ?
मैं तो उसे भूलना चाहती हूँ
अन्यथा
पल काटना मुश्किल हो जाता है |

कौशल


लड़कियों !
विद्रोह करने का नुस्खा
अपनाईये
सबेरे सो कर उठिए दस बजे
दैनिक कार्य
निपटने के बाद
अपने नाश्ते की चिंता कीजिये
दूसरों की चिंता करेंगी !
मिट जायेंगी
आप |
डर किस बात का
कोई क्या कर लेगा आपका 
आप भविष्य हैं
उनका
वे नाखुश होते हुए भी
मुंह से मीठी मुस्कान
मीठी जुबान भी निकलेंगे
फिर
आपके पास मातृत्व है
अपने कौशल भंजायिये
और
मस्त रहिये |

बुधवार, 21 नवंबर 2012

गाँठ


बचपन
कैसा अबोध होता है
माँ से लड़नेवाला बुरा होता है
और गाँठ पड़ जाती है
मन में
वो भी एक ऐसी गाँठ
जिसे हम कभी नहीं खोल पाते हैं |
उम्र के साथ
समझ बढ़ने पर
उस घटना को हम
जब पुन: महसूसते हैं
तो पाते हैं
एक नयी दृष्टि
पर वह बंधी गाँठ
हमसे नहीं खुल पाती है
शायद
हममें मनोबल का अभाव रहता हो
इस समय काल और दूरी भी
अपनी
मुख्य भूमिका अदा करने लगते हैं
गांठ के न खुलने में |

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

कृपा


शुगर टेस्ट में 9.5 है
अब एक समय खाना बन्द
फिर कंट्रोल हो जायेगा
शुगर लेवल 6.5 वापस हो जायेगा
क्या नसीब है !
किसी के पास डाक्टर है दवा है
किसी के पास खाना नहीं है
वाह ! रे न्याय
आजीवन अथक परिश्रम के बाद
मंदिर के सामने बैठ जाते है
बुढ़ापे में  
अपाहिज होने पे दान हेतु
ये कैसी व्यवस्था है ?
अमीर तो जी ही ले रहा है
गरीब आकाश की ओर
ताक रहा है
कृपा हेतु |

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

बतियाना जरूरी है !


घने कोहरे में
उभरता तेरा अक्श
कोहरे में ही
विलीन हो जाता है
काश !
निकलकर आती वह आकृति
कोहरे से बाहर
और घंटों बतियाती सुख दुःख  |
कितने अकेले हो जाते हैं
हम
इस भागमभाग में
अपनी जुझारू  दिनचर्या में |
क्यों नहीं सीखता इंसान
जीना राह में
एक गंतव्य से दूसरे गंतव्य तक
जाते वक्त |

वो कन्या


दखते ही देखते
कहानी बन गई वो
क्या पता कब आयेगा कोई पाठक
पर आयेगा जरुर
ईंट का काल ज्ञात करने
कोई पुरातत्ववेत्ता
और तब
वह जी उठेगी वह
अपनी कहानी में
फिर से
कक्षा में छात्र पढेंगे उसे
उसका चरित्र विश्लेषण करेंगे
उसे चाहनेवालों की संख्या
अगणित होगी
अहोभाग्य !
उस कन्या का |

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

भक्त जय हो तेरी !


खुद को मिलती थी
रोटी कभी खाने को
आज
गाय को रोटी खिला रहे हैं
आज धनी हो गए हैं
आखिर कैसे
जरुर किसी का दिल तोड़े होंगे
तभी तो
आज
धार्मिक बन
पाप काट रहे हैं
भक्त बने फिर रहे हैं
जय हो !
भगवान तेरे भक्तों की |

पैतृक हुनर



गृह उद्द्योग !
पैतृक उद्योग है
तेरा हुनर
न छोड़ना इसे
!
मेरे प्यारे विद्यार्थी
सदा देगा तुझे
आत्मिक आनन्द
वैभव और समान जीवन में
कहीं भी रह ले
स्वदेश या विदेश
तेरे परिवार की अनुभूति
हर पल तेरे साथ |

बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

प्यार की लता


दीदी  !
तुम्हारा काम छूट जायेगा
फिर तुम गरीब हो जाओगी
कोई बात नहीं
मैं उस समय
अपने गुल्लक के पैसे
दे दूंगी तुम्हे ...
चार वर्षीय बहन के
मुख से
शब्द निकल पड़े ....
काश !
हममें भी एक बालक जीवित रहता
महसूसता
दुःख
अपनों के
इतनी भी क्या महत्वाकांक्षा !
भूलें हम जड़ों को
थोड़ा तो खिंचाव रखें हम
सुख दुःख बांटे
हम अपनों से
नयी पौध !
आज मेरा आह्वान है तुम्हे
जकड़ लो 
अपनी प्यार की लताओं से
अपनों को
' कैसे '..... ?
यह तुम्हें सोंचना है
नौकर से समझौता कर सकते हो
तो अपनों से भी करो |






बूढ़े एक मुसीबत


सास की मौत क्या हुई
कमाऊ बहू पर और मुसीबत पड़ी
पुत्र को पत्नी के लिये
आफिस के पास
दुगने भाड़े पर मकान लेना पड़ा |
जीवनसंगिनी की आत्महत्या ने
ससुर को तोड़ दिया था
वे बीमार रहने लगे थे 
अस्पताल पास रहने से
पड़ोसी की सहायता ले कर 
ससुर स्वयं भी अस्पताल जा सकते हैं |
बच्चे की देखभाल करना अच्छा लगता है
सभी अपने औलाद की देखभाल करते हैं
आखिर बच्चे ही तो हमारा भविष्य हैं
उन्हें अच्छे विद्यालय
फिर अच्छे कालेज में पढ़ाना आसान नहीं हैं |
घर के बूढ़े तो बीता कल हैं
समय मिले तब न बैठें
बेटा बहू उनके पास !
कमरे में दूरदर्शन है
खाना तो हॉट केस में रखा है
और क्या चाहिए उन्हें ?
अब बहू नौकरी छोड़ कर ससुर को ' रामायण ' सुनाने से तो रही
अजीब मुसीबत हैं
फिर कमाऊ पत्नी की इज्जत तो करनी पडती है
अरे भई !
किस्मतवालों को मिलती है
अच्छेघर की लड़की
जिसे पैतृक संपत्ति भी मिलनेवाली हो |

सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

उफ्फ ! सुबह हुई !


उफ्फ !
काफी रोशनी हो गयी !
जल्दी तैयार होना है
नाश्ता बनाना है जल्दी से
कम्प्यूटर खोलना है
कितने मिलनेवाले इंतजार कर रहे हैं
जल्दी उठूँ
गनीमत है आफिस का समय नौ बजे है
ये उसकी नौकरी ही है
जिसने उसकी रसोई का अत्याधुनिक बना दिया है
नहीं तो सुबह सुबह महरी के पीछे लगो
अरे !
लो सूरज भी निकल गया
उफ्फ !
समय कितनी तेज भागता है .......
वह चादर फेंक उठ खड़ी हुई |