शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

वो कन्या


दखते ही देखते
कहानी बन गई वो
क्या पता कब आयेगा कोई पाठक
पर आयेगा जरुर
ईंट का काल ज्ञात करने
कोई पुरातत्ववेत्ता
और तब
वह जी उठेगी वह
अपनी कहानी में
फिर से
कक्षा में छात्र पढेंगे उसे
उसका चरित्र विश्लेषण करेंगे
उसे चाहनेवालों की संख्या
अगणित होगी
अहोभाग्य !
उस कन्या का |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें