मंगलवार, 28 मई 2019

सोये सपने



- इन्दु  बाला सिंह


ऐसा न जाने  क्यों होता है

कि पुराने चित्रों का अपना चेहरा

अपना ही नहीं लगता  ........

ढूंढता है मन

अपना खोया सपना

न जाने किस पल सो गया मेरा सपना  |


सोमवार, 27 मई 2019

मेरा घर कौन सा है ?

March 20
#स्त्री

इंदु बाला सिंह


होश सम्हालते ही पाया मैंने खुद को अनाधिकृत जमीन पर

बेटी हूं न ....


बचपन में पिता का घर था

युवावस्था में पति का घर था


मेरा घर कौन सा है ?

स्वाभिमान

#स्त्री

-इंदु बाला सिंह


मैं नॉकरी से रिटायर हो गयी

अब ....दिनचर्या भर बदली है

और कुछ नहीं

व्यस्तता तलाश ली है मैने

अहसानमंद हूं मैं अपनी माता की जिसने मुझसे बचपन से ही चौके का काम करवाया

अहसानमंद हूं मैं अपने पिता की जिन्होंने रिश्तेदारों की परवाह न कर मुझे उच्च शिक्षा दिलवायी

आज मैं स्वाभिमानी बुजुर्ग हूं

ऑफिस छूटा तो क्या हुआ चौका तो सदा मेरा है

मैंने अपने घर में कालेज के विद्यार्थियों को पेइंग गेस्ट रख लिया है

मेरा कमाने का तरीका भर बदला है ।

यशस्वी भव


- इंदु बाला सिंह


कभी किसी अपने के डहुरने का कारण न बनना

बीता पल लौट के न आता

घाव कभी न भरता

रुपया कुछ है पर सब कुछ नहीं

भागमभाग में उतर जाता है नशा ....

आखों के आगे

बस

सूना आकाश रह जाता है ....

बंजर जमीन रह जाती है ...

यश न कमाया तो क्या कमाया ।

जी ले हर पल

मार्च -7

- इंदु बाला सिंह


उठ


बाँध समय को


वरना निकल जायेगा पल हाथ से


आज तक


न लौटा है समय


और


न लौटेगा कभी


जी ले ....


कहीं हाथ न छूट जाये अपनों का ....


इस भागमभाग में |

बेटियां और उपेक्षा


- इंदु बाला सिंह


अपनी खुशी के पल में जिन बेटियों को अपने जन्मदाता नहीं याद रहते उन्हें क्या नाम दूं

मन में बस एक विचार आया ....

दूसरे पल मन सोंचा

अपनी खुशी के पलों में हम ईश्वर को भी तो भूल जाते हैं

दुख के पल ईश्वर बहुत याद आते हैं हमें ..

बेटी भूल जाती है अपने उन जन्मदाता को जिन्हें अपना वसीयतनामा लिखते समय अपनी बेटी नहीं याद रहती ..

तो बेटी तो क्षम्य ही है ...


बेटियों से इतनी आकांक्षा क्यों !

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

आखिर क्यों चुन रहे हम ' अकेलापन '



- इंदु बाला सिंह

मां दान करती है बेटी एक लड़के को  समाज के सामने पूण्य कमाने के लिये

और

दान करती है  मन ही मन   अपना बेटा एक लड़की को

तभी तो

वह अर्धचेतन अवस्था में भी आदेश देती है अपनी बहू को

क्यों दान देते हैं हम अपनी संतान को ?

क्या हम रिश्तों से मित्रवत नहीं रह सकते !

बड़े परिवार के विघटन से कितने अकेले हो गये हैं हम

गुरुवार, 31 जनवरी 2019

स्मार्ट गांव कब बनेगा ?

-इंदु बाला सिंह

मेरा शहर स्मार्ट सिटी है

मेरे शहर में कुत्तों के मकान है

हम गले में पट्टी डाले कुत्ते को सैर करानेवाले कर्मयोगी से पूछते हैं किस मकान का कुत्ता है

और हमें उत्तर मिलता है फलां नम्बर के मकान का कुत्ता है

हम यूं भी कह सकते हैं


मकान नम्बर से पहचाने जाते हैं आदमी से नहीं


आदमी दिखे तब न

हमें तो मकानों से निकलने वाली गाड़ियां भर दिखती हैं

वैसे मेरा मुहल्ला पाश है

पर इसकी सड़कें गन्दी हैं

यहां आवारा कुत्ते अपनी गन्ध छोड़ते हैं

और पालतू कुत्तों का तो अपना ही मुहल्ला है

उन्हें अपनी गन्ध छोड़ने का हक है ....


हमारी सड़कें धो कर साफ सुथरा रखती है बरसात

काश बरसात रोज दो घण्टे के लिये होती दोपहर में ...

मेरे शहर में चोरियां नहीं होतीं

हर मकान सी० सी० टी० वी० युक्त है

पर एक्सीडेंट बहुत होते हैं सड़कों पर सड़कें चौड़ी नहीं है न

मेरे शहर में मकान बनते हैं फिर टूटते हैं

आखिर हर मकानमालिक अपने मनमाफिक मकान बनाना पसन्द करता है

कभी न कभी हमारा गांव भी स्मार्ट गांव बनेगा ।

#व्यग्य रचना 

बुधवार, 30 जनवरी 2019

मकान की कीमत

- इंदु बाला सिंह

दिन भर का थका हारा तन लौटता है

औऱ

दिखने लगता है उसे

अपना मकान ....

कितना सम्मोहन रहता है अपने मकान में

यूं लगता है मानो वह ... आतुर हो  मिल बैठ बतियाने को

रात कट जाती है सुरक्षित

मकान की कीमत घरहीन से नहीं मकानहीन से पूछो ।


सोमवार, 28 जनवरी 2019

आग ठंडी जरूर होगी ।

- इंदु बाला सिंह

गजब की थी लगन

और था जुनून

अंधी दौड़ थी उसकी

दर्शक मौन थे

पीठ पीछे खुसुर पुसुर था

कोई बुरा न कहलाना चाहता था

आग ले के पैदा नहीं हुई थी वह

समय ने लगा दी थी आग उसके जिगर में ....


मैं इंतजार में थी उसकी आग के ठंडे होने की

ज्वालामुखी ठंडा होता है तो उससे निकली धातू बड़े काम आती है

सुप्त ज्वालामुखी के पास घर भी बसता है ।




कामवाली के बिना जीवन मुश्किल है ।

-इंदु बाला सिंह

बेटी न चाहूं मैं

फेंक दिया था मैंने अपनी नवजात बेटियों को कम्बल में लपेट के

मुझे बेटा चाहिये था

जब पैदा हुआ रख लिया उसे ....

मैं तो गरीब हूं

अमीर रहती तो टेस्ट करा के अपनी बेटी पेट में ही मार देती ...

कौन बेटी को पालेगा , उसे सुरक्षा देगा

बहु तो मिल ही जायेगी मुझे

हम कमाने खानेवाले लोग हैं ....

अपनी कामवाली की बातें सुन मैं सोंच रही थी ..

यह जब बीमार पड़ेगी तो क्या अपना बेटा मेरे घर काम पे भेजेगी ?

क्या इसका बेटा मेरे कपड़े धोएगा ?

मेरे अंदर न तो डिश वाशर खरीदने की सामर्थ्य है और न ही कपड़े धोने की मशीन ।

बेटी जरूरत है ।

-इंदु बाला सिंह

आओ ! सिखायें बेटियों को हम ...

बेटी का फर्ज

बेटी की जिम्मेवारी है .....

उसके जन्मदाता , भाई , बहन

उसका पति और उसके बच्चे

बेटी को स्वस्थ और आत्मनिर्भर बनना है

क्या पता कोई  उसके सपने को अपना सपना मान सतत उसकी नींव बन खड़ा हो

याद रखना है बेटी को उस निकटस्थ मित्र को

और दुश्मनी की चाभी उसे किसी गहरे जल में फेंक देना है

बेटी  शक्ति है ..
शान है
करुणा की धारा है .

बेटी को कमजोरी और निर्भरता शब्द निकाल फेंकना है अपनी डिक्शनरी से ...

बेटी जरूरत है

क्योंकि

बहन के बिना भाई अकेला है ।


रविवार, 27 जनवरी 2019

मन भालू बन रहा है ।

- इंदु बाला सिंह

मैं कौन हूं

गाहे बगाहे प्रश्न करता है मन ....

मन बाल शिशु सा भौंचक देखता है अगल बगल

सब व्यस्त हैं

कहीं से कोई उत्तर नहीं

धीरे धीरे डूब रहा है मन ...

आखिर मन दौड़ता क्यों नहीं .... मौसम में खिलता क्यों नहीं

मन आखिर इतना जिज्ञासु क्यों है ?

मन क्यूं नहीं खुद तलाशता अपने प्रश्न का उत्तर ?

मन जाड़े में  धूप सेंकता भालू बन रहा है ।

शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

मन ही सृष्टि है

- इंदु बाला सिंह

मन में ही

न जाने कब , कैसे होता है एक विस्फोट

और

जन्मता है एक कोष

गजब है ...

यूं लगता है मन धरती का सागर है

एक कोषीय जीव  फैलाये अपनी पाँखें

बस फुदक पड़ेगा जमीन पर

और बन जायेगा थलचर ....

रोज उगता है

एक आशा का सूरज

और डूबता भी है वह हर रोज दुबारा उगने के लिये  ।



सोमवार, 14 जनवरी 2019

शरीर के लिये आत्मा जरूरी नहीं ।

- इंदु बाला सिंह

ईमानदारी की छांव में बसे आत्मा

पर

वो जल जाये ...

उड़ जाये....

बन के गैस ....

बेईमानी की धूप में...

शरीर को आत्मा न होता कोई मतलब  ।


रविवार, 13 जनवरी 2019

खोते हुये पल की तड़प

- इंदु बाला सिंह

पुरानी वस्तुयें ... मात्र वस्तुयें नहीं होती हैं

वे तो मील का पत्थर होती हैं

वे हमें उस कालखण्ड में लौटा ले जाती हैं जिस पल को  हम अपने जीवन की आपाधापी में बिसरा चुके जोते हैं

बड़ा मोह होता है पुरानी वस्तुओं से

वे जब हमसे छूटती हैं तो लगता है मानो हमारे अपने कुछ पल  खो गये

आखिर क्यों छूटते हैं हमसे हमारे पल ?

काश वे पल सदा हमारे साथ रहते ।