-इंदु बाला सिंह
बेटी न चाहूं मैं
फेंक दिया था मैंने अपनी नवजात बेटियों को कम्बल में लपेट के
मुझे बेटा चाहिये था
जब पैदा हुआ रख लिया उसे ....
मैं तो गरीब हूं
अमीर रहती तो टेस्ट करा के अपनी बेटी पेट में ही मार देती ...
कौन बेटी को पालेगा , उसे सुरक्षा देगा
बहु तो मिल ही जायेगी मुझे
हम कमाने खानेवाले लोग हैं ....
अपनी कामवाली की बातें सुन मैं सोंच रही थी ..
यह जब बीमार पड़ेगी तो क्या अपना बेटा मेरे घर काम पे भेजेगी ?
क्या इसका बेटा मेरे कपड़े धोएगा ?
मेरे अंदर न तो डिश वाशर खरीदने की सामर्थ्य है और न ही कपड़े धोने की मशीन ।
बेटी न चाहूं मैं
फेंक दिया था मैंने अपनी नवजात बेटियों को कम्बल में लपेट के
मुझे बेटा चाहिये था
जब पैदा हुआ रख लिया उसे ....
मैं तो गरीब हूं
अमीर रहती तो टेस्ट करा के अपनी बेटी पेट में ही मार देती ...
कौन बेटी को पालेगा , उसे सुरक्षा देगा
बहु तो मिल ही जायेगी मुझे
हम कमाने खानेवाले लोग हैं ....
अपनी कामवाली की बातें सुन मैं सोंच रही थी ..
यह जब बीमार पड़ेगी तो क्या अपना बेटा मेरे घर काम पे भेजेगी ?
क्या इसका बेटा मेरे कपड़े धोएगा ?
मेरे अंदर न तो डिश वाशर खरीदने की सामर्थ्य है और न ही कपड़े धोने की मशीन ।
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