गुरुवार, 31 जनवरी 2019

स्मार्ट गांव कब बनेगा ?

-इंदु बाला सिंह

मेरा शहर स्मार्ट सिटी है

मेरे शहर में कुत्तों के मकान है

हम गले में पट्टी डाले कुत्ते को सैर करानेवाले कर्मयोगी से पूछते हैं किस मकान का कुत्ता है

और हमें उत्तर मिलता है फलां नम्बर के मकान का कुत्ता है

हम यूं भी कह सकते हैं


मकान नम्बर से पहचाने जाते हैं आदमी से नहीं


आदमी दिखे तब न

हमें तो मकानों से निकलने वाली गाड़ियां भर दिखती हैं

वैसे मेरा मुहल्ला पाश है

पर इसकी सड़कें गन्दी हैं

यहां आवारा कुत्ते अपनी गन्ध छोड़ते हैं

और पालतू कुत्तों का तो अपना ही मुहल्ला है

उन्हें अपनी गन्ध छोड़ने का हक है ....


हमारी सड़कें धो कर साफ सुथरा रखती है बरसात

काश बरसात रोज दो घण्टे के लिये होती दोपहर में ...

मेरे शहर में चोरियां नहीं होतीं

हर मकान सी० सी० टी० वी० युक्त है

पर एक्सीडेंट बहुत होते हैं सड़कों पर सड़कें चौड़ी नहीं है न

मेरे शहर में मकान बनते हैं फिर टूटते हैं

आखिर हर मकानमालिक अपने मनमाफिक मकान बनाना पसन्द करता है

कभी न कभी हमारा गांव भी स्मार्ट गांव बनेगा ।

#व्यग्य रचना 

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