कितना मुश्किल
होता है जीना
पल पल किसी
पुरुष रिश्ते से धक्का खा कर गिरना
फिर फिर उठना
खड़ा होना
इतना आसान
नहीं
निर्माण करना
अपना स्वाभिमानपूर्ण जहां
या फिर बन गये
आशियाँ को टिकाये रखना
कितना कुछ
खोते हम
तेज धूप में
चलते रहते हुए
ए० सी ० में
आराम फरमाते हमारे अपने
हमें कोंचते
से रहते हरदम
होंठ सूखते
मन कुम्हलाता
मुस्कुराती
बुद्धि हम पे
कह उठती ...
तूने ही तो
चुना था मार्ग स्वावलम्बन |
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