अपने
अस्तित्व के तलाश में
बेहाल भटकते
भटकते भूल जाते हैं हम
स्वयं को
पहचानना
थक हार कर जब
सुस्ताते हैं हम
किसी
वृक्ष तले दो पल तो पाते हैं एक अद्भुत
ज्ञान
वाह ! क्या
बात है
जन्मे ही थे
पांव में चक्का लगाये हम
भटकन ही हमारी
पहचान है
मुस्करा भी
लेते हैं हम अपनी इस नादानी पर |
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