शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

जीवन दौड़

दिनरात रोते हो तुम
अपनी बेटी के दुख में सिसकते हो तुम
कभी न तुमने सोंचा
कैसे पली होगी मेरी औलाद
आज भी तुमसे कोई मतलब नहीं मुझसे
कैसे रक्त सम्बन्धी हो तुम !
मैं न चाहूं तुमसे कुछ
ओ सहोदर !
मान भी न देना चाहो तो कोई बात नहीं
पहचानते हो मेरी बेटी को जब तुम्हें उसकी जरूरत होती है
कभी न काम आये तुम मेरे  
मर्द होने पर गर्व है तुम्हे
रखे रहो अपना अभिमान अपने पास
मैं निम्न स्तर में हूँ तुमसे
कोई बात नहीं मैं खुश हूँ अपने स्तर में
बने रहो कर्त्ता धर्त्ता  समाज के
मेरा मनोबल खींच ले जायेगा मेरा जीवन रथ
मुझे जीवन पथ में दूर
कोई बात नहीं तुम्हारे साथ तुम्हारे हित मित्र हैं
मैं भी जोगन हूँ जीवन की
जीऊँगी सदा अपने कर्तव्यों के लिए
मुस्कुराऊँगी अपने लिए
ली है टक्कर तुझसे
हराउंगी तुझे
देखना एक दिन मैं भी जीतूंगी यह दौड़
पार करूंगी हर बाधा
ऐसा है विश्वास |





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