सोमवार, 26 अगस्त 2013

बिजली की औलाद

वसीयत में मिली तूफानी रातें
सम्हाली है मैंने
हर सुबह चुस्त कर देती हैं ये मुझे
तेरे डुबोने की मंशा मुझे
न होगी पूरी जान ले
लाख कर उपाय
बिजली की औलाद हूँ
अपनी मौत मर जाओगे एक दिन
हो के परेशान
एक दिन |

बादल गरजे

उमड़ घुमड़ कर गरजे बादल
चमक चमक कर बरसे कितना बादल
लो अब साफ हुआ असमान
सुखी सड़क
सूखा मन
अब काम पर निकलने को आतुर मन
बहुत हुआ दृश्यावलोकन |

ज्योति जला दूं

संध्या  हुई !
चलूँ ज्योतित करूं प्रकश स्तम्भ
क्या पता
भटका हो कोई पथिक
मेरी ज्योति
कर दे
उसका आशा दीप प्रज्वलित
देर न कर
चल मेरे प्यारे मन
घबराना कैसा
तेरे साथी तेरे पांव |

पुत्र कुछ लेता नहीं

पुत्र याद आता है
पुत्री न याद आती है हमें
पुत्र तो कुछ भला कर भी जाता हमारा
पर पुत्री सदा कुछ लेने ही आती
कैसे मान लें हम
अब पुत्र पुत्री एक समान
कोरा आदर्श
सदा दुःख ही देता
सुविधाभोगी है जग सारा |

सकारात्मक विचार !

बड़ा दुःख दे
सकारात्मक विचारधारा
हम रो सकें
बस दखते रहें अनागत को
सपनीली आँखों से
और पथराते रहें
धीरे धीरे |

ढूंढूं रत्न

प्रेम और सद्भाव तलाशूं मैं
इस चित चोरों की नगरी में
गली गली भटके मन
खोजूं अपने दो रत्न |

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

बादल गरजे

उमड़ घुमड़ कर गरजे बादल
चमक चमक कर बरसे कितना बादल
लो अब साफ हुआ असमान
सुखी सड़क
सूखा मन
अब काम पर निकलने को आतुर मन
बहुत हुआ दृश्यावलोकन |

आगे बढ़

राह की झाड़ियां काटते हुए आगे चलते चलते
चूर चूर हो जाता  मन
पलट कर दौड़ना चाहता है वापस
पर झाड़ी में छुपा बाघ उसे लौटने नहीं देता
उसे आगे बढना ही है
राह बनानी है अपने पीछे आने वाले के लिए |

ज्योति जला दे

 संध्या  हुई !
चलूँ ज्योतित करूं प्रकश स्तम्भ
क्या पता
भटका हो कोई पथिक
मेरी ज्योति
कर दे
उसका आशा दीप प्रज्वलित
देर न कर
चल मेरे प्यारे मन
घबराना कैसा
तेरे साथी तेरे पांव |

सोमवार, 19 अगस्त 2013

कुछ तो बोलो

उछाल देता है वक्त
सब्र का पैमाना हमारा
और हम सोंचते रह जाते हैं
चलते जा रहे हैं
अरे ! कुछ तो बोलो
उद्गार तो  निकल ही जाते  हैं
अपने प्रिय को कांधे पर ढोते वक्त भी |

कद पिता का

ज्यों ज्यों बेटा बड़ा होता
पुत्र के पिता का सर
स्वाभिमान से ऊँचा होता
बेटी का कद बढ़ते देख विचारक पिता का कद
धीरे धीरे छोटा होता
और वह मौन होता जाता |

प्रतिभावान लडकियां

प्रतिभावान लडकियां दिखती है कालेजों में
घरों में क्यों नहीं भला
आफिस में क्यों नगण्य हो जाती हैं
सड़क पर तो मूक बन जाती हैं
मात्र मादा दिखने लगती हैं
प्रतिभा का बीज छोड़ आती हैं शायद लडकियां
अपने कालेज के मैदान में
और कालेज हमारे जेहन में स्मरणीय बीज सा सोया रहता है |

विचार कर चलें

सिर और मुंह ढांप गमछे में
चलाते हैं मोटर साईकिल आज जो युवा
इस सुहावने मौसम में भी
कुछ तो छुपाते होंगे वे हमसे
सरकार से मांगने वाले पारदर्शिता आफिस के कर्मचारियों की
को न दिखते मुंह ढांपे ड्राइवर ...
यह सब तो देखना पुलिस का काम है ...
ये कैसी जीवन शैली है ?
इतना तो निश्चित है
हमारा भविष्य असहिष्णु हो रहा है
चलना जिन्दगी है
पर कैसे चलें
यह भी तो चिन्तन जरूरी है |

ऊर्जा है सीटी

सीटी बजाते हुए
घर लौटता कर्मचारी
श्रम - सौन्दर्य का प्रतीक होता है 
घर देदीप्यमान हो उठता है उसकी उपस्थिति से
बिना बिजली के
मस्ती में डूब वह जब
सीटी बजाता हुआ चलाता है दोपहिया
पल भर में बन जाता है तब
संतुलन का प्रतीक और प्रकृति का उपासक |

रविवार, 18 अगस्त 2013

पेड़ किसने लगाया !

हम तो चले आम खाने 
आप पेड़ गिनते रहिये
हम आम तो आम गुठलियों के दाम भी निकालेंगे
पेड़ किसने लगाया
यह पता करते रहिये आप |

मन ! तलवार न धर

कूद पड़ना तलवार ले
सामने की जंग में
ये कैसी फितरत है तेरी
मन तू क्यों मानता नहीं
सामनेवाले को सुधार करने से भला क्यों चूकता नहीं
बुद्धि आज है परेशान खडी
ये कैसी विडम्बना है
एक कोशीय से बहुकोशीय हो गये
तू परिवर्तित होता नहीं
कब बदलेगा तू    
तेरी शाश्वत साथिन बुद्धि आज तुझसे प्रश्न करे |

शनिवार, 17 अगस्त 2013

तलाश अस्तित्व की

अपने अस्तित्व के तलाश में
बेहाल भटकते भटकते भूल जाते हैं हम
स्वयं को पहचानना
थक हार कर जब सुस्ताते हैं हम
किसी वृक्ष तले दो पल तो पाते हैं एक अद्भुत ज्ञान
वाह ! क्या बात है
जन्मे ही थे पांव में चक्का लगाये हम
भटकन ही हमारी पहचान है
मुस्करा भी लेते हैं हम अपनी इस नादानी पर |

संरक्षक

सती व सीता से सीखा मैंने
स्वाभिमान का महत्व
जीजाबाई ने सिखाया आदर्श मातृत्व
अभावों के झूले में पल बड़ी हुयी
जानूं मैं श्रम का मूल्य
मैं हूँ सिरमौर पिता का
और संरक्षक जन्मदाता की |

जन्मदाता का ऋण चुकाती हैं

प्रतिदिन सात से चौदह पन्द्रह वर्ष के लडके घुमते है सड़क पे
हाथ में गुलेल पकड़े रंगीन कपड़ों में रूखे बालवाले ये काले दुबले
कहीं भी रूक जाते हैं
मारते हैं चिड़िया
नीरस चहरे वाले ये ढांचे शान हैं अपने जन्मदाताओं के
लड़कियों का इस उम्र का जत्था विभिन्न बिल्डिंगों में रहता है
ये लडकियां  कमा , खा , अच्छे कपड़े पहनकर अपने मालिक के घर की सदस्या बनी रहती हैं
हर माह मालिक से अपनी तनख्वाह ले अपने माता पिता की आमदनी बढाती हैं
मालिक के बच्चों की स्कूटी से  बाहर के काम भी कर देती हैं ये
मालकिन से मनुहार कर पढना लिखना भी सीख जाती हैं ये लडकियां
बिल्डिंगों में सुरक्षित रह  अपने जन्मदाता का ऋण चुकाती हैं प्रतिमाह लडकियां |

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

आत्मा जीवित है

आत्मा आज भी जीवित है उसकी
बुद्धि की चाबुक थामे
मन पर सवार हो वह घुड़दौड़ करती है
छापामार युद्ध भी करती है
राह की बाधाएं पर करती है
मौसम को महसूस कर
चलती चली जाती है
मुस्कुराती भी है
यही मुस्कान उपलब्द्धि है उसकी |

हम भी हठीले

हठीली किस्मत पकड़ में आयी नहीं
बारम्बार हम पकड़ते रहे
वह हाथ से फिसल जाती रही
लगे हैं आज भी पकड़ने में उसे हम
देखने का है मन
हमें आज भी जोर अपने बाजूओं का
हम भी कम हठीले नहीं |

व्यवस्था आपने बनायी है

कुछ ऐसा कर जाइये
अपनी औलादों को जोड़ जाईये
समय तो मुट्ठी में हमारी
उसे न दोष दीजिये
हम ही अपने भाग्य विधाता
इतना याद रखिये
गलतियों के बीज न बोइये
दूसरों को सुधारने से पहले आप
स्वयं को सुधारिए
भाई छले भाई को या फिर बहन को
यह गुन सीखा कहां पुत्र ने
यह तो बतलाइए
समाज को क्यों दोष देते
व्यवस्था को क्यों दोष देते आप
विचारधाराएं तो आपने ही बनाई है
हर कर्म घर से शुरू होता
कर्मफल भोगने से न घबराइए |

सुधारने की चाह !

वे समझना न चाहे
समझाते  रहे हम उन्हें
समझा समझा हारे हम
जग हमें मूढ़ कहने लगा
अब कोस रहे हम स्वयं को 
हाय किस घड़ी में सुधारने का बुखार चढ़ा था हमें
आज मौन बैठे सोंच रहे हैं हम  |

बुलबुला

मन
आज हो विकल
चाहे तलाशना बीते पल
बुलबुले सा चमके वो सतरंगी
फिर मिट जाए वह अतीत |

तलाश है मुद्दे की

बिन मुद्दा
जीवन हो मृतप्राय
ढूँढने चली  हो विकल मै आज
मुद्दों के जंगल में
एक मनचाहा मुद्दा |

जीवन दौड़

दिनरात रोते हो तुम
अपनी बेटी के दुख में सिसकते हो तुम
कभी न तुमने सोंचा
कैसे पली होगी मेरी औलाद
आज भी तुमसे कोई मतलब नहीं मुझसे
कैसे रक्त सम्बन्धी हो तुम !
मैं न चाहूं तुमसे कुछ
ओ सहोदर !
मान भी न देना चाहो तो कोई बात नहीं
पहचानते हो मेरी बेटी को जब तुम्हें उसकी जरूरत होती है
कभी न काम आये तुम मेरे  
मर्द होने पर गर्व है तुम्हे
रखे रहो अपना अभिमान अपने पास
मैं निम्न स्तर में हूँ तुमसे
कोई बात नहीं मैं खुश हूँ अपने स्तर में
बने रहो कर्त्ता धर्त्ता  समाज के
मेरा मनोबल खींच ले जायेगा मेरा जीवन रथ
मुझे जीवन पथ में दूर
कोई बात नहीं तुम्हारे साथ तुम्हारे हित मित्र हैं
मैं भी जोगन हूँ जीवन की
जीऊँगी सदा अपने कर्तव्यों के लिए
मुस्कुराऊँगी अपने लिए
ली है टक्कर तुझसे
हराउंगी तुझे
देखना एक दिन मैं भी जीतूंगी यह दौड़
पार करूंगी हर बाधा
ऐसा है विश्वास |





बंजर नहीं धरा

खाली जमीन पर भी मुस्कुरा उठते हैं पौधे
आंधी  उड़ा ही लाती है कोई न कोई बीज
वर्षा जल पा वे सांस लेने लगते हैं
अंकुरित हो उठते हैं

कौन कहता है धरा सदा बंजर रहती है |

स्वाभिमानपूर्ण जहां

कितना मुश्किल होता है जीना
पल पल किसी पुरुष रिश्ते से धक्का खा कर गिरना
फिर फिर उठना
खड़ा होना
इतना आसान नहीं
निर्माण करना अपना स्वाभिमानपूर्ण जहां
या फिर बन गये आशियाँ को टिकाये रखना
कितना कुछ खोते हम
तेज धूप में चलते रहते हुए
ए० सी ० में आराम फरमाते हमारे अपने
हमें कोंचते से रहते हरदम
होंठ सूखते
मन कुम्हलाता
मुस्कुराती बुद्धि हम पे
कह उठती ...

तूने ही तो चुना था मार्ग स्वावलम्बन |

पुत्री की माँ

पिता और पति की धूरी पर घूमती
स्त्री की जिन्दगी
प्रतिफल पाती औरत
पिता व पति के कर्मों का
जग से हारी औरत
गले लगा अग्नि को पूजनीय बन जाती
शाश्वत सत्य है ये कथा तेरी
ओ पुत्रवती ! नमन करूं मै तुझे
हो विकल मैं चली ढूंढने

अब  पुत्री की माँ |

तन को ढंके कपड़ा

आदमी से कपड़ा है
कपड़े से आदमी की पहचान होती नहीं
मामूली कपड़ों में भी दमक जाये सैनिक का चेहरा
कर्मों का प्रतिविम्ब झलकता सदा आँखों से
क्यों मिटता तू  दिखावे पे
हर व्यक्ति है सैनिक अपने लक्ष्य मार्ग का
इतना तू जान  ले
अनुशासन  से कट जायेगा अंधकार जीवन का
याद रख ओ प्यारे
आज  जो अपमानित हुआ  था सड़क पर भीड़ से
आम आदमी समझा  था जिसे सब ने
क्या पता वो उन्हें  मिले
कल उनकी  नियति का निर्णयाक बन
कपड़े का काम है तन ढकना

बस इतना जान ले |

सोमवार, 5 अगस्त 2013

इंसान हो गये

मुस्कुराहट ला पाए हम आज
एक अनजाने अकेले गुमसुम चेहरे पर
यही सफलता है हमारी
हमें लगने लगा है इस पल मानो
हम भगवान का पद छोड़
इंसान हो गए हैं  |

आत्मा जीवित है

आत्मा आज भी जीवित है उसकी
बुद्धि की चाबुक थामे
मन पर सवार हो वह घुड़दौड़ करती है
छापामार युद्ध भी करती है
राह की बाधाएं पार करती है
मौसम को महसूस कर
चलती चली जाती है
मुस्कुराती भी है
यही मुस्कान उपलब्द्धि है उसकी |