मंगलवार, 31 मई 2016

हिस्से की छांव


पिता ने वादा किया 
सुरक्षा देने का
जमीन जायदाद में हिस्सा देने का
अपनी बेटी से ..
शर्त छोटी सी थी ....... बस अपने निकम्मे जीवनसाथी को त्यागना होगा .........
पिता अपना वादा भूल गये ....... गुजर गये .......
पर
बेटी अपने पिता का वादा याद रखी ......
कुम्हलाती रही
अपने हिस्से की छांव तलाशती रही |

गुरुवार, 26 मई 2016

आंखेंं खुश्क रहें



-इंदु बाला सिंह

यारा !
रो लेना
इतना ...... अकेले में
कि
आंखेंं खुश्क रहें   ... सबकी ईर्ष्या की पात्र रहें ...
तेरे आफिस में । 

रविवार, 22 मई 2016

मैं न पहचानूं तुम्हें



- इंदु बाला सिंह

जिंदगी ने सिखाया जीना
समझौते करना
अकेले में दो घूंट रम पीना
अपनी मौज में रहना  .....
तुम कौन हो ?
मैं न पहचानूं तुम्हें
और क्यों डालूं जोर  ....... अपने दिमाग पे
पहचानने के लिये ........ तुम्हें । 

शनिवार, 21 मई 2016

सफलता का आकांक्षी





-  इंदु बाला सिंह


कल रात आंधी आयी
बलशाली की हुयी कमायी
सूर्योदय से पहले
कट गये  ........ शहर के  ... पार्क के  ...... सारे धराशायी पेड़     .....
सफलता का आकांक्षी ....  सदा सोता कच्ची नींद
क्या पता ..... कब अवसर खटखटा दे
उसके द्वार । 

गुम जाती है लड़की




-इंदु बाला सिंह




सुनसान बालकनी में
आ खड़ी होती है कभी कभी एक सात वर्षीय लड़की
और वह मुझे खींच ले जाती है मुझे मेरे गांव में
दिखाती   है मुझे पोखरी ........ खेत ...... मेरी अपनी बखरी   ....स्टेशन से गांव तक पहुंचने के ऊबड़ खाबड़ रास्ते   ......
फिर दिखलाती है वह मुझे मेरे पिता के हाथों में लटकती अमीरती भरी हांडी  .........
फिर ......वह लड़की कहीं गुम  जाती है । 

गुरुवार, 19 मई 2016

होनी



-इंदु बाला सिंह

होनी !
गर तुम्हारा  गरूर बढ़ गया है
और तुम पर्वत बन आ खड़ी हो  मेरी राह में
तो मेरे हाथ में भी छेनी और हथौड़ा है .......
मुझे राह बनाना आता है । 

बुधवार, 11 मई 2016

माँ की गाली



-इंदु बाला सिंह


उठा के फेंक दूंगा  ........
उसके बाद आठ वर्षीय छात्र के मुंह से   निकली  एक भद्दी सी
 मां के नाम की गाली
अपने प्रतिद्वंदी के लिये  ........
वह छात्र भूल चुका था
कि
उसकी माँ अभी जिन्दा है ।

सोंच और सिक्का



- इंदु  बाला  सिंह


सोंच को नदी बना
ओ रे मानव !
अनुभूति  राह की ऊबड़ खाबड़ भूमि , बदलते मौसम से गुजरती हुई
जब जब हर रात लौटेगी तेरे पास
बना जाएगी
वह तेरी चेतन   भूमि को उर्वरा   .......
सावधानी से रखा सिक्का ही आये ........समय पे  काम
रिश्ते न जानें कब गुम  जायें
जीवन के किसी मोड़ पे । 

शुक्रवार, 6 मई 2016

भले ही तन काठ बन जाये


06 May 2016
12:56
-इंदु आला सिंह


आस की डोर टूट गयी हो
और गर राह आगे जा रही हो
तो बेहतर है चलना ....
धीरे धीरे चलते रहना ......
चेतन ज्योत जलाये रखना ....
बस ...... बढ़ते रहना आगे ही आगे ...
भले ही तपन बना दे .......भींगा तन काठ |

अस्तित्व रेखा


06 May 2016
12:46

-इंदु बाला सिंह

कहते हैं - गुलामी अभिशाप है.......
और मैं कहूं - मानसिक गुलामी उससे बड़ा अभिशाप है .....
क्रूर विधि की स्मृति रेखा सरीखी औरत से बड़ा गुलाम न देखा मैंने आज तक .....
न जाने कब खींचेगी वह ....... अपनी अस्तित्व रेखा |

बुधवार, 4 मई 2016

कंधे की तलाश


04 May 2016
17:58

-इंदु बाला सिंह

हैरान हूं मैं आज ......अपनी सोंच पे
आखिर क्यों तलाशती रही .... आस करती रही मैं सुकून के लिये
कोई एक मित्र कंधा ......
कैसे मैं भूल गयी थी कि कंधा तो लोग शव को देते हैं .......
फिलहाल मुझे शव बनने की कोई चाह नहीं |

प्रार्थना विष है


25 April 2016
15:30
-इंदु बाला सिंह
कहते हैं
प्रार्थी को दान दे कर
उसे गुलाम न बना पायें हम
तो
बड़ी जल्दी वह ढूंढेगा ....मौका
सबके सामने हमें लज्जित करने का ...... अपमानित करने का ..........
शायद अव्हेत्न में छिपे इसी भाव के तहत
आजीवन दान नहीं दिया मैंने ......भीख नहीं दिया किसीको .................
बस प्रार्थी को समय के हवाले कर
उसके ......पीठ पीछे
उसके गुणों का बखान किया |

रविवार, 1 मई 2016

कूड़ेदान



- इंदु  बाला सिंह


कूड़ा फेंकने के लिये एक दिन बना ईंटों की   जोड़ाई से बना घेरा .......
मेरे घर के सामने कूड़ेदान बनेगा ?
एक दिन
थोड़ा टूटा कूड़ेदान  ....
और कुछ दिनों में अनधिकृत बस्तीवाले उठा ले गये ईंटें .......
अच्छा हुआ
कचड़ा चुननेवालों को आसानी हो गई ........
पूरे सड़क पर कचड़ा बिखरा रहने लगा
कुत्तों को भी कचड़े से खेलने के लिये विस्तृत जगह मिल गयी  .......
अबकी कूड़ा फेंकने के लिये  से क्रेन   से ला  कर रखे गये    बड़े बड़े डस्टबीन ......
कचड़ा चुननेवाले और कुत्ते हार न माननेवाले थे
वे  सूर्योदय से पहले ही कूद जाते थे
इस नये पांच फिट ऊंचे , चार फ़ीट चौड़े और  दस फ़ीट लम्बे डस्टबीन में .......
कचड़ा अब भी सड़क पर बिखरा रहता था   ........
कुत्ते , कचड़ा चुननेवाले और डस्टबीन रखनेवाले तीनों  लगे थे अपने अपने कामों में
तीनों के जीने का जरिया कूड़ेदान था ।