शुक्रवार, 30 मार्च 2018

चुनौती एक उत्प्रेरक है


- इंदु बाला सिंह


तुम्हारी चुनौतियां मेरे जीत के जज्बे को बढ़ाती हैं

मैं चाहता हूं .....


तुम मुझे अहसास दिलाते रहो


 अपनी उपस्थिति का

और 

मेरे मन में जलती रहे आग जीतने की ....

मैं दिखाना चाहता हूं तुम्हें 


अपनी जीत का मंजर ।

मनभावन लड़ाई


-इंदु बाला सिंह


लड़ाई है यह ...

पहचान की


नाम की


अहसान की


अस्तित्व की


हक की


आत्मसम्मान की


एक बेटी की लड़ाई है यह ..


उसके बुरे समय से


उस के वजूद की ....


हर लड़ाई आदमी अकेले ही लड़ता है


बाकी सब तो दर्शक हैं 


वे अपने मनचाहे , मनभावन दृश्य के अनुसार ताली बजाते है ....

निकटस्थ लोग अपना मनोरंजन करते है ।

अभाव ही भूत है


-इंदु बाल सिंह

आर्थिक रूप से गरीब को कोई नहीं पहचानता 
वह , अस्तित्वहीन चलते चलते गिर जाता है
उसकी मौत का जिम्मेवार कोई नहीं होता
पर प्राण निकलते ही उस गरीब की अहमियत हो जाती है
उसके मृत शरीर को अपने पहचान लेते हैं
उसका क्रिया-कर्म करते हैं ...
अपनों को उस गरीब के भूत बन जाने का भय सताने लगता है ।

सफलता का रहस्य


- इंदु बाला सिंह

गांव के मिडिल स्कूल के मास्टर का लड़का बिजिनेसमैन बन गया ...
अपने शहर का एक नामी व्यक्ति और मकान मालिक बन गया ...
पर उस गोरे चिट्टे आदमी की कलूटी पत्नी को देख लगता था ...
जरूर उसने डट के दहेज लिया होगा ...
और एक दिन मैंने सुना उस गोरे चिट्टे बेटे का पिता गंगा में डूब गया ..
सफल पुत्र के पिता की ये कैसी जीवन यात्रा थी ..
कहते हैं सफल पुत्र को देख पिता अपनी मूछ पर ताव देता है ।

शतरंज लुप्तप्राय नहीं हो सकता


-इंदु बाला सिंह


जिंदगी शतरंज है ...
इसमें
पैसेवाले जीतते हैं ...
गरीब मिटते हैं
मध्यम वर्गीय अपने डैनों में अपने परिवार छिपाये रखते हैं ...
बाकी अनाथ किसी के जीने का माध्यम बन जाते हैं ।
वर्गभेद न हो
तो जीने का माध्यम ही न हो ....
कहानियां कैसे बनें ..
हम वर्गभेद बनाये रखते हैं ....
शतरंज का खेल खेलते रहते हैं ।

लेखक बनो , नाम कमाओ


- इंदु बाला सिंह


रोती महिला पर लिखो .....
पिटती औरत पर लिखो ....
परिवार का पेट भरने के लिये बिकती औरत पर लिखो ....
अरे !
कलम चलाना है ...
नाम कमाना है ....
तो लिखो न अपनी माँ पर
जिसे तुम याद करते हो आज भी अपने संस्मरण में फेसबूक पर ...
वैसे मां के वृद्धाश्रम में रहने का खर्च तुम्ही तो उठाते हो ।

दादी की कहानी ... 1


- इंदु बाला सिंह
गांव में दादी कहानी सुनाती थी ...
एक बार ब्रह्मा पेट बनाना भूल गये
और आदमी रिश्ते पहचानना भूल गया
तब से ब्रह्मा बड़ी सावधानी से अपनी सृष्टि रचते हैं ।
मैं अपने पोते को कहानी सुनाती हूं ....
एक आदमी था
वो पैसे संचय करना भूल गया
और रिश्ते उस आदमी को भूल गये ।

मन न मारना


- इंदु बाला सिंह

मन एक प्यारा सा भोला बच्चा है 
वह चुप रहता है ..
अपनेआसपास की दुनिया देखता रहता है ....महसूसता रहता है ।
इसे फुसला कर हम इससे बहुत सारे काम करवा लेते हैं ....
पर यह अपनी चंचलता , ताजगी खोने लगता हैं ...
अबोध मन सपने देखता है
आखिर क्यों मारते हैं हम अपना मन ।

सत्तर साला औरत - 3


-इंदु बाला सिंह
वह दादी थी ..
वह नानी कहलाना भूल चुकी थी ...
न जाने क्यों ।

मैं पैसा हूं


- इंदु बाला सिंह
मैं पैसा हूं 
मेरी कोई जाति नहीं ...
मेरा कोई धर्म नहीं
मैं सबको जोड़ कर रखता हूं
मझे सब प्यार करते हैं
छोटे बच्चे किलक उठते हैं मुझे पा के
मैं उन्हें चॉकलेट और गुब्बारे दिलाता हूं
अमीर हो या गरीब सभी मेरी इज्जत करते हैं
मैं साधू सन्यासी के भी काम में आता हूं ।

लगा दे कोई एक कैमेरा


-इंदु बाला सिंह

मेरे शहर के कूड़ेदान पे ...
लगा दे कोई ..
एक कैमरा .....
न जाने कौन बिखेरता है कूड़ा दूर दूर तक
मेरी सड़क पे ।

उपहार हैं वें .... रिश्तेदार हैं वे |


Thursday, February 01, 2018
9:45 AM
-इंदु बाला सिंह

अपनों को माफ़ करते वक्त पत्थर बन जाता है कलेजा
और फिर रसधार नहीं फूटती
उस अपने के लिये ...
पर किसी न किसी मौसम में रसधार तो फूटेगी जरूर .....
आखिर अपने ही तो हैं वे .....
अपनों के उपहार हैं ....वे रिश्ते |

मन ही मनहूस हो गया है


Thursday, February 01, 2018
9:28 AM
-इंदु बाला सिंह
डूबता सूरज सा मन मनहूस होने लगता है
शायद मन ही मनहूस हो गया है .... न जाने क्यों !
वर्ना दिन भर के श्रम से शिथिल पड़ा बादलों की सेज पर विश्राम करता सूरज कभी दुखी न महसूस होता ..
सूरज तो सुख निद्रा में डूबा है
उसे सुबह उठना है
उसके कंधों पर जिम्मेवारी है |

बच्चा बनना भला


-इंदु बाला सिंह

अपमानित मन टूटे न 
दुखी न होय
बुजुर्ग ....बस बच्चा बन जाय ....
छोटी छोटी खुशियां तलाशे ...
और वह .... खुश हो जाय
बच्चा बन मुस्काना भला लागे उसे ।

छाता जरूरी है


-इंदू बाला सिंह

मां छाता होती है 
बच्चे को धूप , बरसात से बचाती है ....
रात में लाठी का काम करती है ..
एकदिन छाते की सियन टूट गयी ....
मुझे उघड़े छाते के साथ आफिस जाना पड़ा ..
और मुझे कमी महसूस होने लगीे छाते की ......
मैं सुई खोजने लगी ।