रविवार, 31 जुलाई 2016

सावन में शिव



-इंदु बाल सिंह

शिव घबरा कर चले  गये हैं शहर  की किसी सुनसान जगह   की ओर ......
एक विशाल पेड़ की छांव में  बैठें हैं वे
और लोग नहलाये जा रहे हैं बेजान पत्थर । 

काम करो



- इंदु बाला सिंह

कचरा नहीं  उठायेंगे
घास नहीं निकालेंगे
घरों में बर्तन नहीं मांजेगें   .......
मशीनें आ गयीं हैं
हम अपना काम खुद कर लेंगे
तुम हमारी चिंता मत करो
पर हमेशा तुम अपनी सोंचो   ... विचारो .........
कहीं तुम  इस्तेमाल तो नहीं किये जा रहे हो ?
कल अपना पेट  भरने का उपाय है तुम्हारे पास ?
आखिर क्यों जा रहे तुम मजदूरी करने दूसरे देश ?
ऐसा भी क्या बहकना
दूसरों की बातों में आना
काम करो    ...... बस  काम करो ।

रविवार, 24 जुलाई 2016

वे तो बदलती रहतीं हैं



- इंदु बाला  सिंह



रोना मना है
डरना मना है
ओ युवा !
चल उठ .... याद रख
कि
जिंदगी एक राह है
और
तुझे  चलते जाना है
ऋतुओं   का क्या   ....  वे तो बदलती  रहतीं   हैं ।

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

बेटी तो बस बेटी ही है



- इंदु बाला सिंह


बेटी   ........ कहलाती है बेटा
सम्हालती है ....... जब वह अपने माता  पिता को   ..... आर्थिक रूप में
और भाई के पास ढेर सारे बहाने हैं   .......  देखभाल न कर  पाने के अपने जन्मदाता का  ।
आखिर क्यों खुश होती है बेटी   ... खुद को बेटा कहलाए जाने पर  .........
क्या  बेटे सा मान पानेवाली   बेटी ....... पुरुष सत्ता , निरंकुशता  की परिचायक नहीं    ......
बेटी तो    .... बस   ...... आजीवन बेटी ही रहती है । 

शहर में गाँव


मेरे शहर में बहुत से गाँव बसते हैं 
कहीं दो कुत्तों के झगड़ने की आवाज सुन
अपनी अपनी सड़कों से बिजली की तरह निकल ........ भागते हैं कुत्ते .... घटना स्थल की ओर
झगड़ा खत्म होते ही ..... खामोश से लौटते हैं वे .... अपनी अपनी सड़कों पे ....... अपने अपने घरों में ।

बड़ा निकम्मा है मन



- इंदु बाला सिंह


कुछ ऐसे  चुभो जाते हैं कांटा  ....  अपने
जो निकाले नहीं निकलते
मन भी तो  निकम्मा है  ..... कुछ करता धरता  नहीं
जितना भी समझाओ ....   वह नेकी को दरिया में डालता नहीं । 

बुधवार, 20 जुलाई 2016

सड़कों पे कैमरा कब लगेगा ?



-इंदु बाला सिंह



म्युनिसिपैलिटी ने कल पेड़ लगाया सड़कों पे
उन्हें बड़ी बड़ी जाली से ढका
और जाम किया   कांक्रीट से जाली को  मिट्टी में  ......... आवारा पशुओं से बचाव  के लिये   .......
दुसरे  दिन जाली गिरी पड़ी थी   .... पेड़ गायब था
म्युनिसिपैलिटी ने कचरा का डब्बा रखा  ...फेंकने के कचड़ा
हर रोज जमीन पर बिखेर देता है कचरा एक हट्टा कट्टा आदमी
न जाने क्या ढूंढ़ता है वह   ....
इन्तजार है अब लगने का सड़कों पे कैमरे
अपने बच्चों को ईमानदारी और सच्चाई का पाठ पढ़ाने के लिये
खुद को चौकन्ना रखना पड़ता है
गलतियों से बचना पड़ता है
आखिर स्कूल के भरोसे कितना रहेंगे बच्चे ।






 कृपया इसमें छुपे #व्यंग्य को समझें |

मंगलवार, 19 जुलाई 2016

छुपती क्यों तुम



- इंदु बाला सिंह


ओ री कविता !
क्यों जन्म लेती हो तुम  सुबह के मॉर्निंग वाक के दौरान
और
घर पहुंच  ......... टिफिन तैयार कर टेबल के सामने बैठते ही
छुप जाती हो न जाने तुम कहां   । 

गिद्ध दृष्टि

 Indu Bala Singh


सड़कें
सज रहीं हैं
नये  लिबास धारण कर  रहीं हैं
छायादार हो रहीं हैं
पैदल और दुपहियावालों को सुकून दे रहीं हैं
बदरंग हो रहे हैं बगल के मकान ...... पर साँसे चल रहीं हैं इन घरों में   .......
चमचमाते मकानों की गिद्ध दृष्टि लगी है   ......  घरों पे ।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

वह भूखा है



- इंदु बाला सिंह

प्रेम आसमानी  बादल है भूखे के लिये
भूख की बिलबिलाहट में उड़ जाते हैं कहीं दूर ये बादल और बरस जाते हैं तृप्त घरों में   .....
भूखे को तो बस  ....  काम चाहिये
स्वाभिमान  से भरी  रोटी चाहिये
भूखे का  दिवास्वप्न भी उसकी नौकरी है    ........
वह जानता है कि नौकरी ही   उसकी  पहचान है। 

अपना मकान


Indu Bala Singh




उनके अपने मकान ने 
बड़ा रुलाया उन्हें ...

वे भयभीत थे .... बुढ़ापे में कोई कब्जा न कर ले मकान ..... 
छूटे रिश्ते
बेटे से सहायता की आस लिये मिट गये वे
और
बेटे ...... एक दूसरे पे लगाते रहे ..... तोहमत.......
खाली हाथ आये थे वे ..... चले गये खाली हाथ ........
मकान बिक गया कौड़ियों के मोल
बेटे समझदार थे ....... 

उन्होंने अपने अपने हिस्से का पैसा रख दिया बैंक में ।

सोमवार, 11 जुलाई 2016

लड़की की जान

Indu Bala Singh


वह गिर रही थी
अपने देख रहे थे   ..... उसे
इंतजार कर  रहे थे ..... उसकी सांस के रुकने का
उसके   ..... कमरे के खाली होने का   ........
लड़की की जान बड़ी बेहया होती है   ....... शरीर त्याग नहीं करती है वह आसानी से । 

मंगलवार, 5 जुलाई 2016

वह भूखी है



- इंदु बाला  सिंह

खा  के धोखे
सो  गई अंतरात्मा    .......  युवती  की  .....
अब   .... दिग्भ्रमित है वह .....
मिटाये न मिट  रही है उसकी भूख  .....
उसके सम्मान की सूखी रोटी
हर बार  झपट ले जाते हैं   ........ लार टपकाते कुत्तों के झुंड | 

कब तक रुकेगा मन



- इंदु बाला सिंह


बनीं इतनी दूरियां    ....... भला कैसे
कब तक रुकेगा   ...... मन आदमी का
बनने से लुटेरा     .......
आखिर क्यों है    ..... एक घर  भूखा
दूजे घर का डस्टबीन   ...... दिन भर के जूठन से भरा |