गुरुवार, 12 जुलाई 2012

कन्या

भाग कर तूने बसाया
अपना घर |
क्या प्रेम इतना निर्मोही होता है
कि तोड़ देता है बंधन |
सगों को भूल दौड़ गयी तू
पराये के पास |
कभी कभी मन सोंचता है
वह बड़ा कैसा जिसमें बड़प्पन हो |
तू तो बड़ी थी
तुझे अपने परिवार का ख्याल था |
भला फिर कोई क्यों दे
कन्या को मान |

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