शनिवार, 28 जुलाई 2012

माँ बेटी


माँ का चला
फावड़ा जमीं पर
मर्द घुसे घर में
घर से झांकने लगे 
बेटी ने
वांछित पेड़ का
चारा लगाया
पानी दिया
अपने काम में
लग गयी
माँ बेटी |

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

याद


मुझे तुम याद आते हो
तो तुम्हारी पृष्ठभूमि में
खड़ी कार , मकान भी कौंध जाता है
भला ऐसा क्यों ?
शायद यही है
पुरुष सत्तात्मक मानसिकता की देन
कोई मुझे याद करता होगा
तो उसे क्या याद होगा ?
शायद सुन्दर सा एक ऐसा शरीर
जिसे अपने घर में
रख पाला जा सके
काम में लाया जा सके |

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

खाली मकान


वह बड़ी हसरत से
इस कालोनी के मकानों को देखता है ....
कितने बड़े बड़े मकान
खाली पड़े हैं
सब में पीछे तरफ
एक परिवार रहता है
फ्री बिजली पानी
बस ख्याल रखना है मकान  का
काश उसे भी ऐसा ही घर मिल जाय
उसका भी
घर बस जाय
वर्षों पुरानी हसरत
उसकी
जो कभी न कभी तो पूरी होगी
इस विश्वास के साथ
गुजरता है वो इस कालोनी से
हर रोज |

श्री अमुक


पिता के स्वर्गवासी होते ही
माता पिता का संयुक्त बचत खाता
हजम हुआ
माता के प्राणवायु उड़ते ही
बदरंग पैतृक मकान चमक उठा
नए रंग रोगन से
नए किरायेदार गए
श्री अमुक का पता
मिट गया
उसे जरुरत भी थी |

धुँआ


अपनों का पढ़ाया पाठ
पिता ,भाई ,पति को प्यार करने का
उनकी गलतियों को
क्षमा करने का भुलाए नहीं भूल पाती वो |
निज को प्यार करना
सम्मान देना
खुद रास्ता तलाश करना
उस अबोध लडकी ने सीखा ही नहीं |
जिंदगी से इन अपनों के निकलते ही
समाज से कटी
गीली लकड़ी की तरह
वो सुलगने लगती है |
आज लकडियां सुलग रही हैं
समाज में धुँआ छाया है
उस दमघोटू अँधेरे में
प्रगति पथ ढूंढ रहे हैं हम |

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

वो कामवाली


कितनी दूर से
आती थी वो कामवाली |
मालिक के घर के बच्चे
उसे दादी कहते थे |
पच्चासी डिग्री में झुका उसका
सफ़ेद कपड़ों में नंगे पैर चलता शरीर भर  था |
बहुत दिनों से न दिखी वो
आज मैंने पूछ ही लिया उसकी सहेली से |
मालुम हुआ ताकत नहीं है
इस लिये उसने काम छोड़ दिया घर में बेटा बहू हैं |
थोड़ी शांति महसूस हुई
चलो अपने घर में तो है |
आजकल  जो ले पाता है उसे
मिलता है वृद्धावस्था भत्ता या विधवा भत्ता |
आखिर वो कौन सी आग थी
जो उसे एक मील दूर से आ कर कमाने को प्रेरित करती थी |
मन में उठा एक प्रश्न और
अब कैसा महसूस करती होगी आश्रित होने पर वो |

क्षणिकाएं - 2

              1                      


राख तले चिंगारी को
हवा दो उपहास की
भड़केगी तो जल जाओगे |
      2
वर्षों दमन किये
आज क्यों तिलमिलाए
हम क्या इंसान नहीं |
      3
निर्भर रहे
तुम हम पे सदा
फिर यह वहशीपन क्यों ?
    

पुत्र प्रेम


आज भी
पिता को रहती है आशा
पुत्र से
पुत्री से नहीं
क्योंकि पुत्र को देता है
वो नाम , जमीन , जायदाद
और पुत्र
बीमारी में भी नौकर के भरोसे
छोड़ मुक्त हो जाते हैं
निज कर्तव्य से
लेकिन मृत्यु शैय्या पर भी
पिता बेटे का नाम पुकारता है
अस्पताल में 
मानो वह उसे बचा लेगा |

छणिकाएं - 1

                              1


कदम्ब फूल की पंखुरियाँ झरी
देखो सड़क पे पड़ी 
लगे ख़ूबसूरत प्रकृति की चादर
पर मानव पड़ा सड़क पे
लगे कितना वीभत्स 
हैरान मन सोंचे
ये कैसा जीवन सत्य ?

                2

लड़की किसी भी तरह के
कपड़ों में हो
दिन में या रात में
अगर सड़क पर
अकेली चल रही हो
और आपके मन में
गलत विचार जागृत हों
उसके प्रति
तो पशुता
आज भी जिन्दा है आपमें |

                  3

बाप क्या मरा
दुनिया मिटी माँ की
सिक्का बदला
हुक्म चला पुत्र का
बहू बनी है रानी |


वृद्धावस्था की समस्या


बेटियों को आप कुछ नहीं देते
दहेज और प्यार के सिवा
पर वो अपने सुख के पल बांटती है
आप से
बेटे को आप सब कुछ देते हैं अपना
पर वो बांटता  है
अपने सुख के पल मित्रों में |
आखिर क्यों ?.....
यह एक ऐसा विचारणीय विषय है
जिसे सोंचना है आपको
कि समाज को |

सड़क के साथी


कुछ लोग
जिंदगी की सड़क पे भी
सड़क के नीयम का पालन करते हैं
और राहगीरों को
सामने से आने वाली मुसीबत से आगाह कर
निकल जाते हैं |
हमारे ये शुभचिंतक
हमें जिंदगी में कभी नहीं मिलते
पर ये
हमें एक अच्छे व्यक्ति के रूप में
सदा याद रह जाते हैं
और हमारे मन में उनके प्रति सदा दुआ निकलती है |

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

हायकू - 18


मार के ताने
निकाले वो तनाव
बर्फीली माँ पे |

निस्तब्ध रात्रि
के खालीपन में है
मुस्काया भाव |

पिता सूरज
को देखते ही भागा
काला बादल |

समर स्थल ही 
है मेरा प्रिय साथी
घरबार भी |

कन्या

भाग कर तूने बसाया
अपना घर |
क्या प्रेम इतना निर्मोही होता है
कि तोड़ देता है बंधन |
सगों को भूल दौड़ गयी तू
पराये के पास |
कभी कभी मन सोंचता है
वह बड़ा कैसा जिसमें बड़प्पन हो |
तू तो बड़ी थी
तुझे अपने परिवार का ख्याल था |
भला फिर कोई क्यों दे
कन्या को मान |

सोमवार, 2 जुलाई 2012

सम्बन्ध


  
संवादहीनता ने
जिन सम्बन्धों को 
ठन्डे बस्ते में डाला
कालांतर में
जीवाश्म निकले |