बुधवार, 28 अक्टूबर 2015

सपनों के कटघरे से मुक्त हुआ मन




-इंदु बाला सिंह

कहानी जली
जला  उपन्यास
टूटा मन
छपी रचनाएँ जली
गुम  हो गए हम
अपनों के खत जले
हस्तलिपियों से  आती महक गुमी
चित्र जले चिंदी चिंदी हो कर
अंतिम बार झांके चेहरे चिन्दियों से
और मैंने सोंचा -
साँसों से संबंध टूटने के बाद
काश ! देख पाती मैं खुद को जलते हुये…...........
सपनों के कटघरे से मुक्त हुआ मन
स्तब्ध सा
आज
आ खड़ा हुआ यथार्थ की जमीं पर । 

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