मंगलवार, 27 अक्टूबर 2015

कागजी यादें




-इंदु बाला  सिंह

बेहतर होता है नष्ट  देना  कागजी  यादों को
सच्ची थी होंगी
तो
आयेंगी याद
बनेंगी
जीने  ऊर्जा
वर्ना आखिर कितनों को समेटें हम
अपने पिटारे में
सुविधाजनक होता है चलना सड़क पर
ले कर हल्के असबाब……
और देखते ही देखते धू धू जल उठीं यादें
एक तीली से....
आवाक खड़ा है मन ।


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