बुधवार, 30 सितंबर 2015

आत्ममुग्धा



-इंदु बाला सिंह 


लेखक नहीं हूं मैं 
पर 
लिखती हूं 
पाठक नहीं हूं मैं
पर  
पढ़ती हूं अपनी रचनाएं 
आलोचक नहीं हूं मै
पर 
आलोचना करती हूं खुद के वर्णित चरित्रों की 
रचना के भावों की 
मुग्धा हूं  मैं
अपनी रचना की |

अकेलापन


30 September 2015
23:04


-इंदु बाला सिंह

लटक गयी
या लटका दिया गया
पता नहीं
पिता की इकलौती सन्तान
जो
अपने पिता के
गुजर जाने के बाद
अपना अकेलापन दूर करने के लिये
बनी थी
दूसरी पत्नी एक युवा की
और आर्थिक रूप में सहायक थी
अपनी सौत की |

लिंग भेद


30 September 2015
22:41
-इंदु बाला सिंह


दस हजार की तनख्वाह पानेवाले सुपुत्र होते हैं
मिलती है उन्हें
अपने  ब्याह में
कार जेवर के साथ लड़की
पर
दस हजार तनख्वाह पानेवाली लड़की सुपुत्री नहीं होती
उसके जन्मदाता
अपनी दुखी रहते हैं
उनकी बेटी बिनब्याही रहती है
वह
आजीवन समाज से कटी
अपनों के लिये बोझ बनी रहती है
बस सुधार का
सपना देखते रह जाते हैं हम |

सोमवार, 28 सितंबर 2015

अनूठे लेखक


- इंदु बाला सिंह


ओ लेखक !
ओ गजब के  दूरदर्शी हरिशंकर परसाई और प्रेमचंद  !
स्वर्ग में बैठ मुस्काते
तुम हम पर
तुम सरीखे  न कोई आज मेरी धरती पर
भला क्यों ?

रविवार, 27 सितंबर 2015

कहीं कुछ होनेवाला है



- इंदु बाला सिंह

विश्वास हारा
खोया खोया
इलेक्ट्रॉन मन भटक रहा  है
प्रोटॉन की  तलाश में
जल रही है धरती मौसम की मार से। .......
जी शंकित है
आज देख आकाश में
इलेक्ट्रॉन के  काले उमड़ते घुमड़ते  बादल
कहीं कुछ होनेवाला है ..  शायद ।  

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

बचा के रखो



-इंदु बाला सिंह


बस यूं  ही कहने  की बातें हैं
मुसीबत में
काम आते हैं अपने
बचा के रखो यारो ! अपना स्वाभिमान और स्वावलंबन
अपने  हृदय के  बैंक में
जब चाहो निकाल लोगे  इन्हें तुम
अपने विचार के ए०  टी ० एम ० से
और
खरीद लोगे
तुम पल भर में
अपनी मुस्कुराहट इनसे  । 

रविवार, 20 सितंबर 2015

आ पल भर मौज करें



-  इंदु बाला सिंह


व्यवस्था को सुधारने से बेहतर है माहौल सुधारना
अपनी निष्क्रियता को भाग्य  का नाम दे
ईश्वर को
नहीं  कोस सकते तुम
तेरी मुट्ठी में है बन्द तेरा सुगन्धित समय
जरा पढ़   न तू
अपनी हथेली  का लेखा
अरे ओ ! निराश मन
आ चल चलें
' एलिस ' की अद्भुत दुनियां में
आ न जरा
पल भर मौज  करें । 

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

तुम मुझे मिलने से रहे



-इंदु बाला सिंह

थे होगे
तुम किसी के प्यारे
हमारे लिए
तो इस व्यस्त जिंदगी में
तुम
पढ़ने लायक खबर भी नहीं
गुजर गए तुम आज किसीकी जिंदगी से
तुम्हारे कर्मकांड के बाद
तुम्हारी सम्पत्ति पाने वाला निश्चिन्त होगा
भला अखबार में पढ़ कर
तुम्हारे जाने की खबर
क्यों बर्बाद करूँ
आज
मैं अपना समय
अखबार के शीर्षक ने मुझे बता दिया-
अब तुम मुझे मिलने से रहे । 

बुधवार, 16 सितंबर 2015

दिल में रहो न




-इंदु बाला  सिंह

सब कर्मचारी
आफिस देर से पहुंचते
तू क्यों बसा है  मंदिर में
तेरे नाम पे सब अपने कमरे की सफाई  करते
ओ भगवन !
तुम क्यों न रहते सबके दिलों में ।

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

न बरसना तू




-इंदु बाला सिंह



बादल !
आँखों से न बरसना तू
बस
यूं ही उमड़ घुमड़
मेरा मन भिंगोना तू
हरियायेगा  मेरा बीज
पनपेगी मेरी लता
एक दिन
धरा का
यह अटल विश्वास है । 

रविवार, 13 सितंबर 2015

तुम मेरे हो




-इंदु बाला सिंह


तुम 
मुझसे दूर कभी न जा पाओगे
मैं बसी हूँ
तुममें
तुम्हारे ख्यालों में
जब जब अकेले होगे तुम
मुझे पाओगे सदा ही अपने पास
क्योंकि
तुम मेरे ही अंश हो |