बुधवार, 26 सितंबर 2018

ग्लोबलाइजेशन

- इंदु बाला सिंह

गाते थे हम ..

रंग बिरंगा ये देश है मेरा

है इसकी .... भिन्न भिन्न  बोली ।

अब गाते हैं हम ...

रंग बिरंगी ये दुनिया है मेरी

भिन्न भिन्न है इसकी बोली और भिन्न भिन्न हैं देश हमारे ।

हम एक हैं

हम धरती की संतान हैं  ।



सोमवार, 24 सितंबर 2018

परिवार की परिभाषा

- इंदु बाला सिंह

समय बदल रहा है...रुपये का मोल भी

पुरुष धूरी बन रहे हैं घर की

महिलाएं उनके इर्द गिर्द हैं .....

पुरुष दुकान में सामान सजा रहे है

महिला काउंटर पर सामानों की लिस्ट फीड कर रही है ...

वीसा कार्ड स्वाइप करवा रही है...

महिला की औलाद दीवार की ओर मुंह कर बैठी है और  ....अपने स्कूल का होमवर्क कर रही  है ...

घर की ही  तरह दुकानों में भी कोई इतवार नहीं होता

घर की कोई अकेली पैरेंट महिला बोझ नहीं है असेट है

शहर में परिवार की परिभाषा बदल रही है ।





रविवार, 23 सितंबर 2018

टीम स्पीरिट

- इंदु बाला सिंह

नौकरी छूट गयी ....बीमार था वो ....
उसे हार्ट ट्रांसप्लांट की आवश्यकता थी ...
हार्ट डोनर उसे मिल गया
पर पैसे !
अपने एल्युमनी साइट पर उसने अपनी समस्या पोस्ट की
एक रात में उसके अकॉउंट में एक करोड़ रुपये जमा हो गये
पिता  की आंखें छलक उठीं ....
पड़ोसी हैरत में थे ।

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

पुस्तकें

- इंदु बाला सिंह


किताबें तो किताबें होतीं हैं नयीं हों या पुरानीं

इतिहास कीं हों या विज्ञान कीं

गणित की हों , महापुरुषों या  परियों की ..

रख दो न उन्हें आलमारी में नैपथलीन की गोलियां डाल कर

क्या  पता घर में कोई बालक पुस्तक प्रेमी निकल जाये

और ये पुस्तकें उसकी मित्र बन जायें

उसका मार्गदर्शन करें ....

जिसने भी पुस्तकों से प्रेम किया

पुस्तकों ने उसका साथ ...आजीवन निभाया ।

रविवार, 16 सितंबर 2018

पितृसत्ता की समर्थक

- इंदु बाला सिंह

पचासी साल की वह हमारी रिश्तेदार उम्रदार कभी न भायी मुझे ...

उसे लड़के पसन्द थे ..

उसने कभी लड़कियों की आजादी व हक के बारे में कुछ न कहा ..

उसका ब्रम्ह वाक्य था ...

' लड़की को कोई पिता मकान या खेत अपनी वसीयत में नहीं लिखता है '...

और पिता अपनी बेटी के नाम लिख भी दे खेत और मकान तो भाई और अड़ोस पड़ोस के लोग  उसे लेने नहीं देते हैं....

पिता के गुजर जाने पर लोग उसे अपने पैतृक घर से भगा देते हैं ...

और एक दिन तो उस बुढ़िया ने कमाल कर दिया..

पड़ोसन की बिटिया जब अपने मैके अपनी तीन वर्षीय बेटी  ले के आयी ...

वह कहने लगी ..
कितना प्यारा बेटा है इसका ।

जब मैंने कहा ..
 अरे बिटिया है उसकी !

मुझे मालूम था वह जान बूझ कर झूठ बोल रही  थी ...

पड़ोसन की बिटिया सड़क पर भी नंगी खेलती थी ....आखिर कितनी चड्ढी धोती उसकी मां ...

पल भर में वह कह उठी ...

क्या मैं उसका पैंट खोल के देखी हूं ।


वह पितृ सत्ता  की समर्थक थी ।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

अनुत्तरित प्रश्न

- इंदु बाला सिंह

कहते हैं सपनों को मरने देना अच्छा नहीं

पर मन रेगिस्तान बन जाये तो ! ....

हल्की फुल्की बारिश और तपिश पैदा करती है मन में .....

बाढ़ ही उपजाऊ बना पाती है रेगिस्तान को ।


मन ऊबता है

पर सपने देखना नहीं छोड़ता है

क्या तुम्हारे साथ भी ऐसा होता है ?

मुझे मालूम है इस प्रश्न का उत्तर न मिलेगा .....

पर मन गाहे बगाहे तलाशता है उत्तर ।

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

शाम हर रोज आती है


- इंदु बाला सिंह

शाम आती है

तैयार करती है हमें

नयी सुबह के लिये ....

कभी कभी शाम आती है

हमें अलविदा कहने के लिये ...

बेहतर होता है .… कम असबाब रखना ।

समंदर


-इंदु बाला सिंह

समंदर मेरी खिड़की से झाँका ..
मुस्काया .....

याद करो !

पिछली बार तुम मुझसे मिल न सके ..

इस लिये मैं आ गया तुम्हारी खिड़की पे ...

घबड़ा कर मेरी नींद खुल गयी ....

भोर हो चुकी थी

सूरज सागर का जल सुनहला बना दिया था ....

मेरी खिड़की के सामने विशाल समंदर लहरा रहा था ।


बुधवार, 5 सितंबर 2018

मुट्ठी खुलते ही दुआ बरसने लगी



-इंदु बाला सिंह


दिन में आंख लग गयी

न जाने कैसे बन्द मुट्ठी खुल गयी

और फिसल पड़े किस्मत के बीज ....

उस रात जोर की बरसात हुई

बीज .... मिले न वापस .....


खाली हाथों को मैं देखती रही ....


एक दिन भोर आंख खुली

पौधे लहलहा रहे हैं ... घर की चहारदीवारी में ...

ओह ! मेरी बन्द मुट्ठी के बीज पौधे बन गये ..

उन्हें हर शाम पानी देना जरूरी था

भोर भोर अखबार की टोपी पहनाना भी याद रखना था ...

किस्मत मुट्ठी से निकली न थी

वह पौधों में परिवर्तित हो गई थी ....

....…........

दूर बैठे बच्चे मां के एक वीडियो कॉल से सामने आ जाते थे ..

उच्चपदस्थ छात्रों की दुआ बरस रही थी ।





मंगलवार, 4 सितंबर 2018

अपने


- इंदु बाला सिंह

1

बेटी ने आत्महत्या कर ली
उसकी बिटिया पिता ले कर चले गये अपने घर ...

2

बिटिया ने आत्महत्या कर ली
उसका बेटा अपने घर ले गये पिता
पर संग ले गये अपना दामाद ....
अरे ! घर में रहेगा ....खायेगा पीयेगा ....
कम से कम नाती अपने पिता को तो न खोयेगा ....

आखिर ...ये बेटियां क्यों आत्महत्या करतीं हैं ?
वैसे सुनी सुनायी बात ही रह जाती है ....
बेटियां तो बीमारी के कारण मरती हैं ।