शुक्रवार, 29 मार्च 2013

सुन ले पथिक


राह अनन्त है
रे पथिक !
ले ले अनुभव
कर इतना गुमान |

इतना क्यों हांफ रहा तू
तनिक आंख मूंद ले
तेरे असबाब की रक्षा करेगा
तेरा अपना कर्म |

हमारी राह एक है
असबाब अलग अलग वजन के
चेहरे दुसरे
उत्सुकता एक है |

धरती में मिले जो पथिक
उगे बन वृक्ष
आज छांव देते
हम राहगीरों को |

हर पल जी ले
धन्यवाद दे गुजरे पथिकों को
नया कुछ करता जा
आनेवाली पीढ़ी के लिए |

रविवार, 24 मार्च 2013

चिट्खिनी खोल दो


लडकियां पार्क में नही खेल रही हैं
लडको से भरा है पार्क
आरक्षण है कालेज में
लडकियां कम हैं क्लास में
ऑफिस में लडकियां कम हैं
उच्च पद लडकियां सम्हाल नहीं पाती
बच्चे कौन सम्हालेगा उनके ?
खोलिए चिट्खिनी दरवाजे की
लडकियों का हुजूम निकलेगा
सडकें भरी रहेंगी लडकियों से
रास्ता भी वे खुद तलाश लेंगी |

सम्हलना जरा


सम्हलना जरा तुम
हर इमानदार में जग जायेगा भगत सिंह
तब कितने दिन तक कायम रहेगी
तुम्हारी ये सलतनत
मैंने हर विद्यार्थी में बोया है
इंसानियत के बीज
न डालना तुम खाद पानी
अपने कर्मों से
सोये रहने दो उस बीज को |

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

जीने का तरीका


   

अकेला हो गया वो 
जिन्दगी की साँझ में 
पड़ोसी उत्सुक थे 
देखें अब क्या करता है वो 
औलाद परेशान थी 
अब तो अपने पास ला  कर रखना होगा 
पिता को 
पर 
जिन्दगी भर अपना रास्ता खुद ढूंढा था उसने 
अब भी ढूंढा उसने जीने का तरीका 
घर में लगा ताला 
आउट हॉउस में एक परिवार को मुफ्त  घर मिला 
मित्रों के माध्यम से नौकरी पकड़ी उसने 
बुढ़ापे में मिला साथ सहकर्मियों का 
अब उसे अपने शरीर की 
अंतिम क्रिया की भी चिंता न थी ।

दुखी इमानदारी

दुखी इमानदारी 
बेईमानी की पोशाक मांग कर पहनी 
घर से निकली सड़क पर घूमने 
बहुत  मित्र मिले राह में 
पर घुटन होने लगी उसे ।

हँसते हँसते

हँसते हँसते हनन किया 
उसने मेरे हक का 
अब सुना है 
वो समाज कल्याण करता फिरता है ।

गुरुवार, 21 मार्च 2013

बंधी गांठ


आंचल के किनारे एक गांठ थी
उस कमजोर गरीब महिला के
सभी महिला बांधी रहती हैं कुछ सिक्के
यह किसी के लिये नयी बात नहीं थी
अजूबी बात तो तब हुई
जब उस महिला के मरणोपरांत
वह गांठ खुली
और
सबकी आंखे चुंधिया गयीं
उसमे हीरे के टुकड़े को देख कर
आजीवन उस औरत ने
उस टुकड़े को लोगों की नजर से बचा कर रखा था
चोरी के भय से
अब वो भयमुक्त थी |

सोमवार, 11 मार्च 2013

आरक्षण ?


खेत है खलिहान है
रहने को बड़ा सा कच्चा घर है
पर पैसा नहीं है
औरतें पास के शहर में घरेलू काम करने चली आती हैं
जूते बर्तन धोना
कमरा साफ करना उन्हें बुरा नहीं लगता
श्रम की कीमत इन महिलाओं के परिवारवालों से हम सीखे
ये मुक्त नारियां हैं
नारी मुक्ति आन्दोलन से इन्हें कोई मतलब नहीं
आरक्षण क्या होता है इन्हें पता नहीं
पर इन्हें इनके बच्चे बताते हैं सरकारी योजना के बारे में
विद्यालय से ज्ञान मिलने पर
ये सरल जमीं से जुड़े लोग हमारे लिये उदाहरण हैं
आखिर क्यों सुविधाभोगी हो रहे हैं हम
ये कौन सी राजनीति चल रही है हमारे इर्द गिर्द
शायद इनके बच्चे पढ़ कर शहरी बन जांय |

छोटी लड़की


भात और कमरा मिल जाय
बस और क्या चाहिए
लड़कियों को
जी लेती हैं वे जीवन सुख से
भला हो उन बड़े लोगों का जिन्होंने बनाये
आउट हॉउस वाले मकान
कमरा उसे ही मिलेगा जो करेगा घर में काम
खाना भी मिलेगा
बस एक छोटी लड़की बन जाती है
सहारा अपने माँ बाप के परिवार का
और बड़े लोगों के परिवार का जरूरत
बड़े लोगों के दिए नए व पुराने कपड़ों में
उसका तन चमकता रहता है
सड़क की भूखी निगाहों से सुरक्षित रहती है
यह लड़की
विद्यालय जाने से
क्या फायदा
बड़े बड़े लोग अपने परिवार के लिये
भात और कमरा जुटाते जुटाते मिट जाते हैं
यही छोटी लड़की एक दिन
उम्र बढ़ने पर
ब्याह के बाद  
दूसरे आउट हॉउस में चली जाती है
जी लेती है
खुश रहती है
यह कामवाली लड़की
अपने घर की धुरी होती है लड़की
बड़े घरों की सहायिका होती है लड़की |

पूजनीय है माँ


पिता का इलाज करवाने
शहर से बाहर के बड़े अस्पताल में दिखाने 
की फुर्सत न थी पुत्र के पास
रिश्तेदारों से मिलने चला आता था 
वह पिता के घर
लोगों को पहचानना भी जरूरी था
पिता की मौत के बाद
चमक गया घर
मकान मालिक बन गया था वह
उसने पिता के समय के किरायेदारों को निकाल दिया
नया राजा अपने ढंग से
राज्य के दर्शनीय स्थल बनवाने लगा
माँ का क्या
वह  एक पूजनीय मुर्ति होती है 

शनिवार, 9 मार्च 2013

वह औरत


हर रात को
उस घर से चीखने चिल्लाने  
जोर जोर से लड़ने की
खाली महिला की आवाज सुनाई देती थी
रास्ते में टहलती दिखती थी
हर रोज वही महिला
जरूर उसका आदमी कुछ ऐसा कहता था होगा कि
क्रुद्ध हो जाती थी वो औरत
लोग मिल कर
समझौता कर के क्यों नही रहते ?
एक दिन देखी वह शाल ओढ़
मुंह नाक ढांप कर घूम रही है
किसी से पता चला
उसे असाध्य बीमारी हो गई है
फिर सुनी वो अब इस दुनिया में नही है
मुक्त हो गई वह
रोज की चख चख से
अशांति से
कभी कभी किसी को प्रतिदिन देखने से
एक अजीब सा नाता जुड़ जाता है
अब देखती हूँ
उस औरत का आदमी
एक नई औरत के साथ दिखता है
सुना है
उसने फिर से शादी कर ली है
उस औरत के मकान  में
शांति  रहती है |