गुरुवार, 15 सितंबर 2016

उठाई है मैंने कलम



- इंदु बाला सिंह


काट मेरे मन के कोमलतम तार
तू चाहे मैं उठा लूं आग
पर
शांतिप्रिय मन मेरा
होने न देगा पूरी तेरी आकांक्षा ........
कि
उठाई  है मैंने कलम
और
उंडेल दी है उसमें पूरे मन की श्याही । 

तेरी ' मधुशाला '


Thursday, 15 September 2016
1:25 PM
इन्दु बाला सिंह


ओ ' मधुशाला ' के कवि !
मेरी दुश्मन है मधूकलश और  मधुशाला ......
तेरी आत्मकथा ने ………मोह लिया मुझे

पर बाँध न सकी    …… मधुशाला ……  निज  सम्मोहन में   ……   न जाने क्यूँ …….

कितने घर उजाड़े  ……   रंग रंगीली  मधुशाला ने  
आकर्षित करती हारे मन को  …… हर मधुशाला   
ख़ुद चमकती  …..वह  …..मुस्काती  लूट  ……  नित   नए रईशों का बैंक बैलेंस
तूने तो लिखी  …..   'मधुशाला '  …..   बिन पिये
और
मुझे भी  भाने लगी

आज  …….बिन पिये   …….तेरी ' मधुशाला '  

बुधवार, 14 सितंबर 2016

जो झेल गया वो दमक गया


Thursday, 15 September 2016
11:40 AM

-इन्दु बाला सिंह

प्रलय की रात हो
या
मूसलाधार बरसात हो
जो झेल गया   नकारात्मक प्रचंड आग
वह
दमक गया कुंदन सा

आनेवाली पौध के लिए   उदाहरण बन गया

मिले उपहार



Thursday, 15 September 2016
7:06 AM

- इन्दु बाला सिंह

धन कमाना कब सीखोगी तुम
अपना ……मूल्य ………. कब पहचानोगी तुम
कब तक 'उपहारों ' के सहारे जियोगी तुम
ओ री लड़की !
जरा …….अपने अर्जित धन से उपहार भी देना सीखो न ।

झूठ का सम्मोहन


Thursday, 15 September 2016
11:13 AM
-इन्दु बाला सिंह


झूठ के पाँव लम्बे होते हैं
वह लम्बे  लम्बे डग ले कर अपने पास के और दूरस्थ इंसान को लपेट लेता है
झूठ का सम्मोहन इतना निराला कि जब तक हम चेतें वह नया जाल बिछा लेता है
इसकी  की गिरफ्त से निकलना उतना ही दुरूह है जितना ज़मीन पर रेंगते सांपों से बच के निकलना

सच अपनी  चाबुक पकड़े न्यायालय में कुत्ते की नींद सोता  है  …… अपनी पुकार का इंतजार करता रहता है ।

शनिवार, 10 सितंबर 2016

तलाशूं मैं



- इंदु बाला सिंह

सड़क के इस मोड़ पर पहुंच
न  जाने क्यों लगने लगा आज ..... ईश्वर  कुहासा है   ... भ्रम है ..... नशा है  .... राजनीति का जरिया है   ...
ऐसा भला क्यों ?
माना यह एक अनुत्तरित  प्रश्न है
पर
आज मुझे तलाश है ....... इसके उत्तर की । 

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

औरत ! देख जरा दर्पण



- इंदु बाला सिंह सिंह

इतिहास देखा
और देखा मैंने वर्तमान .......
औरत ! तुम माँ हो   ... मात्र सेविका हो    ...... अपनी सन्तति   ...... पुत्र या पुत्री  की   .... मित्र नहीं   .....
तुम्हारा  सेविका रूप ही समाज में मान्य है   ......
ओ री औरत !  देख जरा दर्पण ........
क्या तुममें अपना अस्तित्व तलाश पाने की चाह है ?
अगर हाँ
तो
बनो योद्धा ।

लड़की तुम योद्धा हो



- इंदु बाला सिंह


लड़की !
तुम प्रिया  नहीं , योद्धा हो
तुम्हें लड़ना है समाज की स्त्री से   .... पुरुषों से ......
लड़की !
तुम सामान हो   ....... तुम्हें दान कर पिता पूण्य कमाता है   ......
तुम कामगर हो ....  मजबूरी की प्रतीक हो ......
लड़की !
तुम पूजनीय हो   ...... इंसान नहीं समझी जाओगी
तुम्हारी गलतियां क्षम्य नहीं   .....
लड़की !
तुम योद्धा हो  ..... तुम्हें लड़ना है   ........ आजीवन लड़ना है
अपने हक के  लिये लड़ना है ....... अपने अस्तित्व के लिये लड़ना है । 

सोमवार, 5 सितंबर 2016

हैसियत में रहना है बेहतर



-इंदु बाला सिंह


बड़ों की  ......  चप्पलें , कपड़े पहन के
बड़ा बनने के सपने देखने बन्द  दिये  हैं  अब    ........ मैंने ........
भाने  लगे हैं अब अपने खरीदे  रंग छुटे कपड़े
आज हैसियत में रहना मेरा मनोबल मजबूत करने लगा है । 

तुम पे न चलाऊँ मैं क़लम



- इन्दु बाला सिंह

कभी न मन किया लिखने का तुम पर
तुम ...... निहंग नहीं हो ....... अभागे नहीं हो मुझ सरीखे इंसान हो ...... मुझे नहीं है सुख पाना ...... लिख के तुम्हारी अज्ञानता पे तुम्हारी टूटी झोपड़ी पे .............. घर तो महल में भी बसता है और मिट्टी के घर में भी ।

रविवार, 4 सितंबर 2016

तुम ...... मेरे ईश्वर हो



तुम्हारी नसीहतें 
अंकी हैं मन की दीवारों पर
ओ मेरे शिक्षक !
जीवन के अँधियारे पलों में .........
रोशनी देते हो तुम मुझे
तुम .....जीवित हो मुझमें
तुम ...... मेरे ईश्वर हो .....पथप्रदर्शक हो ।