रविवार, 28 अक्टूबर 2018

आखिर सुराख हो ही गया ।

- इंदु बाला सिंह

आखिर एक दिन उसने ऐसा तीर मारा कि आसमान में सुराख हो गया

और दुआ बरसने लगी

उसपर.....

मुहल्लेवालों ने दांतों तले उंगली दबा ली ।

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

घुमक्कड़

-इंदु बाला सिंह

यूं लगता है ... लम्बे लम्बे डग भरती  पाजामे और जैकेट में चली जा रही है मेरी काया हल्के धुंधलके में

कोई उत्तेजना नहीं ... बस चली जा रही है मेरी काया ....

और में देख रही हूं खुद को ।

वैसे घूम फिर कर लौटेगी काया जरूर

मन का साथ छूटेगा नहीं ..

कभी कभी बस यूं ही घूम फिर आना अच्छा लगता है ....

बिना ट्रेन , ऐरोप्लेन हम कहां कहां घूम आते हैं

मानव जीवन भी अद्भुत है

पगडंडियों  से गुजरता है

अनुभवों के सागर में  गोता लगाता  है ।

साथी

- इंदु बाला सिंह

धोखेबाज से बचियो

ओ रे साथी !

लूटेगा वो दिखा के सपने ...

दोष .... तेरे सपने का नहीं

तेरा है ....

तूने अपनी अंतरात्मा पर अविश्वास किया ।

साथी की आंखे न पढ़ सका तू ।




बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

कर्जदार रह जायेंगे

-इंदु बाला सिंह


सपने नहीं तो माटी के पुतले हैं हम ..

बिना कुछ दिये चले जायेंगे

बस ...पूर्वजों के कर्जदार रह जायेंगे  ।

बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

क्यों जना था उसने बिटिया


-इंदु बाला सिंह

दुखी है वह

गुजर गयी उसकी बेटी ...

अपमानित है वह

कितना तड़पी होगी बेटी बलात्कार के समय ...

उसकी बेटी सपना संजोयी थी ..

नवमी में मिलनेवाले अच्छे खाने का ... पैसों का ....

बस्ती की सभी लड़कियां चहक रही हैं ..

दौड़ रही हैं ...

वह सूनी आंखों से देख रही है खुले दरवाजे की ओर

अभी पिछले सोमवार की ही तो बात है जब वह बाहर सड़क पर खेल रही थी ...

फिर गायब हो गयी थी उसकी आठ वर्षीय  बच्ची...

आज सब बेटियों की माँ चहक रही है ... खुश हैं

और वह सोंच रही है क्यों उसने जना था बिटिया ।


गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

सुनहरे रिश्ते

- इंदु बाला सिंह

युध्दोपरांत  परिस्थितियां बदल गयीं

 रिश्तों का धागा न जाने कब टूट  गया

हम क्या से क्या हो गये ।






ठोंको न ! ...दरवाजा

- इंदु बाला सिंह

समय की मांग है ..

चलना है ... चलते रहना है  ।

हर पल ठोंकते रहना है ... किस्मत का दरवाजा

कभी न कभी तो खुलेगा दरवाजा ....

आज नहीं तो कल ... कल नहीं तो परसों या नरसों ।

मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

मैं और समस्याएं

समस्याएं  मुझे छलती रही

इन पत्थरों पर   पैर रख मैं ऊपर उठती गयी

राह के दलदल में फंसने से बचती गयी ....

इनकी  लौ में मेरी अज्ञानता का अंधियारा सिमटता गया

निकटस्थ के फंदे कटते गये .....

समस्याओं ने  मुझमें जीने का जज्बा पैदा किया ।