रविवार, 26 जून 2016

आत्मसुख



-इंदु बाला सिंह


बड़ा कठिन है काटना   ........  झूठ के जाले
हर सुबह बिनने  लगता है इंसान  .... मकड़ी सरीखा  ......  जाला    ..... न जाने क्यूं  
वह मिटा डालता है अपनी प्रतिभा .........  एक सरल इंसान को फंसाने में ....
यह कैसा सुख है    ....जो  ....  आत्म सुख देता है उसे .... किसी अबोध को तड़पाने में   | 

असमानता




- इंदु बाला सिंह



तुम सूरज हो ..... में धरती
बेहतर है  ...... हम दूर रहें  ....... अपनी परिधि में ही विचरण करें  .......
यह न पूछना - आखिर क्यूं   | 

बिना श्रम के मिला पैसा


- इंदु बाला सिंह

नौकरीपेशा पिता की मौत के बाद
बैंक अकाउंट का पैसा इकलौती बेटी के पास आ गया था .....
वह पैसा लड़की के पुरुष मित्र को   ....  उसकी मुसीबतों के पल में काम आता था
आये  दिन अपनी पत्नी और चार बच्चों की समस्याओं का दुख बांटते बांटते वह पुरुष मित्र उसे अपना सा लगने था   .......

एक दिन ... लड़की फांसी से लटकी मिली |  

शुक्रवार, 24 जून 2016

बंजारे



- इंदु बाला सिंह

बैंकों ने समझाया
मां - बाप की अहमियत
खेत खलिहान की अहमियत
कोई कर्ज देने को तैयार ही न था शहर को  .....
नौकरी ने समझायी
मूल गांव का अस्तित्व
वर्ना
हम तो बंजारे थे | 

गुरुवार, 16 जून 2016

मौन छायायें

Indu Bala Singh

अल्ट्रासाऊंड से पता चला
दुःख है गर्भ में .......
डाक़्टर ने समझाया - गिरा दो गर्भ  ...
संतान तो प्यारी होती है
और वह भी पहली संतान !
कभी नहीं मुक्त होउंगी अपने अंश से .........
आज  सबने छोड़ा   साथ  मेरा ......
दुख   ...... मेरी कलम में स्याही सा चढ़   ....... रंग रहा है  सफेद कागज  .....
न जाने क्यों आ खड़ी हो गयी  हैं मेरे इर्द गिर्द ........   न जाने कितनी  मौन छायायें | 

सोमवार, 13 जून 2016

उलझनों के धागों का स्वेटर



- इंदु बाला सिंह


उलझनें
सुलझायी  मैंने
फुरसत के पलों  में .......
टूटा न
एक भी धागा ........
काले , सफेद धागों  के गोलों से भरी  मेरी आलमारी
प्रेरित करती है मुझे
बनाने  को स्वेटर .......
क्या तुम पहनोगे मेरे बनाये   स्वेटर ?
सम्हाल के रखना तुम
मेरे  स्वेटर  .........
तुम्हारे आड़े वक्त पे
काम आयेंगे
ये स्वेटर । 

शुक्रवार, 3 जून 2016

पसर जायेगी धीरे धीरे



- Indu Bala Singh

बुलाओ तो नहीं आएगी ईमानदारी पल भर में तेरे घर में ....... पर आयेगी वह तेरे घर जरूर तेरा अड़ोस पड़ोस , मुहल्ला देखकर ....... और पसर जायेगी ...... 
धीरे धीरे वह तेरे चारो ओर ।

गिरे हुये लोग




Indu Bala Singh


आँख से गिरा  आंसू
और
निगाह से गिरा  इंसान
न जाने कहां खो  जाता है  ।