फायलिन आया
सुना
तुमने !
अरे ! तो क्या
हुआ
मुसीबत ही आयी
न हमारे लिए
एक दिन की
तनख्वाह कट जायेगी अब |
मन दौड़ गया
समुद्री तट के
निवासियों की ओर
भरे पूरे गांव
की ओर
जिनसे नाता
था हमारा मनुष्यता का
हमारे घरों
में , आफिसों में मजूरी करते थे वे
कुछ चोरी भी
करते थे
सब कोसते जी
भर कर इन ग्रामीणों को
पर हमारे
सहायक भी थे ये
बड़ी कम्पनी
में कम करते कितने मजदूरों के गांवों का निशां मिटा दिया
सुना है सब
सुरक्षित स्थानों में पहुंचा दिए गये थे
अब लौटेंगे
वे
पर फिर से
उन्हें अपने कच्चे मकान बनाने पड़ेंगे
गृहस्थी
बसेगी
तब न स्कूल
जायेंगे बच्चे
सागर
!
तुम कितने
मनमोहक हो
हमारे सहायक
हो
पर ये
तुम्हारा उफान डराता है मुझे
मैं नहीं
बसना चाहती
तुम्हारे
पास |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें