शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2013

बुढ़ापा

1990

मैं पका फल नहीं 
ये न समझ टपक पडूंगा 
किसी एक शाम 
मैं तो सच्चाई हूँ 
जीवन की 
विम्ब हूँ 
तुम्हारे कल का 
कितना भागोगे स्वयं से !

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