बुधवार, 21 मई 2025

अज्ञानता

 

 

 Date 5 फरवरी 2025

 

री लड़की !

 

कहाँ से सीखा भूलना जड़ें

 

अज्ञानता अपना संविधान की ....

 

पैरासाइट बनना

 

अपने मर्द के मिट्टी में मिलते ही

 

एक दिन   


तू अपनी पहचान खो देगी ।

निकल पड़

An two year old poem


 

 

  

 

 

 

आपका नाम ले कर पुकारने लगे

 

जब आपकी औलाद

 

तब

 

समझ लीजिये

 

वह

 

अब आपके रिश्ते को नहीं मान देता

 

निकल पड़ इंसान

 

अब इस घर को तेरी ज़रूरत रही

 

लौट अब

 

अपने जन्मस्थान की ओर

 

क्यों पुकारती तू

 

ईश्वर मूर्ति में नहीं है

 

मंदिर में नहीं है

 

वह

 

तुझमें है

 

मान रख अपना ।

 

 

आना जाना


 

 

 

घर से किसी का जाना दुख देता है

 

और

 

आना खुशी

 

दुःख और सुख एक दूसरे का मुंह नहीं देखते

 

 

अनोखा रिश्ता है उनका

 

 

पर

 

 

रहते है वे हमारे घर में ही ।

सोमवार, 19 मई 2025

तलाक़

 

 

 


 

 

जुड़ते हैं

 

 

दो परिवार

 

मुहल्ले

 

शहर या गांव

 

राज्य

 

देश

 

संस्कार

 

किसी ब्याह में

 

न कि केवल लड़का लड़की 

न जुड़ पाए 

तो

निश्चित है तलाक़।

रविवार, 11 मई 2025

समतल जीवन की परेशानी


 

 

 

परेशान हूं

 

मैं

 

अपनी समतल जिंदगी से

 

भाता है

 

मुझे कामवाली का जीव

 

आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों से जूझता उसका जीव

 

वह कहती है

 

मेरी बेटी को परेशान करते हैं सड़क पर मनचले

 

मेरा आदमी सुबह पांच बजे का निकला रात दस बजे लौटता है

 

उसकी हर समस्या से मैं वाकिफ हूं

 

अपने कुक, ड्राइवर और माली की समस्या से भी मैं वाकिफ हूं

 

आर्ट मूवी भाती है मुझे

 

कलफ लगी साड़ी पहने लगता है

 

किसी अन्य लोक की अपरिचित हूं अपने शहर के अंदर

 

समस्याओं का ग्राफहो हल करने को

 

जीवन सरल रेखा है

 

मौत है भावनाओं की

 

इंसान रोबोट है

 

जिसका कुछ महीनों बाद सर्विसिंग होता है

 

हर कुछ महीनों बाद

 

 

 

 

 

 

 

मुक्ति


 

 

 

अकेलापन और असहायता साथी होते हैं जीवन संध्या में

 

हाथ में रुपया नहीं

 

रहने को घर नहीं

 

इंतजार करूं मैं

 

बुलावा का

 

मुक्ति का

 

दिल भर गया

 

दुनियां से ।

 

 

रविवार, 4 मई 2025

नौकरी चाहिए

 


 

 

गार्डनर ने कहा

 

उसे दस हजार मिलते हैं

 

स्वीपर ने कहा

 

उसे दस हजार मिलते हैं

 

पलंबर ने कहा

 

उसे बारह हजार मिलते हैं

 

किसी की वार्षिक बढ़ौतरी न थी  

 

और

 

न ही पी ०एफ ० की व्यवस्था

 

 

बुढ़ापा के बारे में सोचने का समय नहीं था किसीको

 

मैं खुद नौकरी के लिये भटक रही थी ।

शुक्रवार, 2 मई 2025

ब्याह के बाद



आख़िर  मेरी पहचान क्या है 

मैं कौन हूं •••••

उठता है  मन में प्रश्न 

बीता कल  संघर्षमय  था 

अकेले लड़ रही थी मैं 

जिम्मेवारियां थीं ••••••

जिम्मेवारियां मिटी 

मैं अपनी  पहचान ढूंढने लगी ।