Date 5 फरवरी 2025
ओ री लड़की !
कहाँ से सीखा भूलना जड़ें …
अज्ञानता अपना संविधान की ....
पैरासाइट बनना …
अपने मर्द के मिट्टी में मिलते ही
एक दिन
तू अपनी पहचान खो देगी ।
My 3rd of 7 blogs, i.e. अनुभवों के पंछी, कहानियों का पेड़, ek chouthayee akash, बोलते चित्र, Beyond Clouds, Sansmaran, Indu's World.
Date 5 फरवरी 2025
ओ री लड़की !
कहाँ से सीखा भूलना जड़ें …
अज्ञानता अपना संविधान की ....
पैरासाइट बनना …
अपने मर्द के मिट्टी में मिलते ही
एक दिन
तू अपनी पहचान खो देगी ।
आपका नाम ले कर पुकारने लगे
जब आपकी औलाद
तब
समझ लीजिये
वह
अब आपके रिश्ते को नहीं मान देता
निकल पड़ इंसान
अब इस घर को तेरी ज़रूरत न रही
लौट अब
अपने जन्मस्थान की ओर
क्यों पुकारती तू
ईश्वर मूर्ति में नहीं है
मंदिर में नहीं है
वह
तुझमें है
मान रख अपना ।
घर से किसी का जाना दुख देता है
और
आना खुशी
दुःख और सुख एक दूसरे का मुंह नहीं देखते
अनोखा रिश्ता है उनका
पर
रहते है वे हमारे घर में ही ।
जुड़ते हैं
दो परिवार
मुहल्ले
शहर या गांव
राज्य
देश
संस्कार
किसी ब्याह में
न कि केवल लड़का लड़की
न जुड़ पाए
तो
निश्चित है तलाक़।
परेशान हूं
मैं
अपनी समतल जिंदगी से
भाता है
मुझे कामवाली का जीवन
आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों से जूझता उसका जीवन
वह कहती है
मेरी बेटी को परेशान करते हैं सड़क पर मनचले
मेरा आदमी सुबह पांच बजे का निकला रात दस बजे लौटता है
उसकी हर समस्या से मैं वाकिफ हूं
अपने कुक, ड्राइवर और माली की समस्या से भी मैं वाकिफ हूं
आर्ट मूवी भाती है मुझे
कलफ लगी साड़ी पहने लगता है
किसी अन्य लोक की अपरिचित हूं अपने शहर के अंदर
समस्याओं का ग्राफ न हो हल करने को
जीवन सरल रेखा है
मौत है भावनाओं की
इंसान रोबोट है
जिसका कुछ महीनों बाद सर्विसिंग होता है
हर कुछ महीनों बाद ।
अकेलापन और असहायता साथी होते हैं जीवन संध्या में
हाथ में रुपया नहीं
रहने को घर नहीं
इंतजार करूं मैं
बुलावा का
मुक्ति का
दिल भर गया
दुनियां से ।
गार्डनर ने कहा
उसे दस हजार मिलते हैं
स्वीपर ने कहा
उसे दस हजार मिलते हैं
पलंबर ने कहा
उसे बारह हजार मिलते हैं
किसी की वार्षिक बढ़ौतरी न थी
और
न ही पी ०एफ ० की व्यवस्था
बुढ़ापा के बारे में सोचने का समय नहीं था किसीको
मैं खुद नौकरी के लिये भटक रही थी ।