मंगलवार, 20 जून 2017

आशा का मोह


Thursday, June 15, 2017
10:06 PM
- इंदु बाला सिंह
आंसू बहते रहे
मन न माना
वैराग्य न जागा
आशा की उंगली थामे हम  चलते रहे
बस चलते रहे
यूँ ही निरुद्देश्य चलते रहे
स्वारथ के संसार में
ठगिनी आशा के मोह में बंधे रहे ।

हम कागज रँगते हैं


Friday, June 16, 2017
1:25 PM
- इंदु बाला सिंह
बड़े चाव से रखा था जिन्हें
बह गयीं ... वे सब यादें
समय के बवंडर में ....
मौसम आते हैं ...जाते हैं
सुरक्षित रहते हैं मकानवाले
बाकी सब ....गुमसुम से रहते हैं .....
और हम , शौकिया कागज रँगते रहते हैं ।

वह अकेली थी


Friday, June 16, 2017
10:00 PM
- इंदु बाला सिंह
उसे
पेड़ से बांध .....जला दिया गया बड़ी बेरहमी से
ससुरालं में ...
आखिर क्यों कमतर थी वह अपने भाई से
अपने पिता की निगाह में .....
पड़ोसी मौन थे
अच्छे लोग पड़ोस में ताका झांकी नहीं करते ....
यही एक अच्छी बात थी उसकी
कि
वह निःसन्तान थी .....

और समय मुट्ठी में समा गया था


-इंदु बाला सिंह
समय पहाड़ सा डराने लगा 
रास्ता रोकने लगा
बिलबिला के वह अंधाधुंध झाड़ियां काटने लगी ...
दृढ़ निश्चय के आगे वनैले पशुओं का भय मिट गया था
....
आखिर खुल गया रास्ता ...
सामने दूर दूर तक हरियाली फैली थी ...
समय मुट्ठी में समा गया ।

अब हिसाब कौन लगाये


Friday, March 17, 2017
10:01 AM
-इंदु बाला सिंह

विचित्र जीव है आदमी
यादों के जाल बुनता है ...
वह खींच कर लाना चाहता है अपने बीते पलों को
आज में ...
अपने बनाये मकड़जाल में वह खुद ही फंसता जाता है .....
एक सुबह उसे महसूस होता है
अब उसकी भुजाओं में अब न तो पुरानी ताकत रही
और न ही आंखों में चुम्बकत्व ....
देखते ही देखते काटने लगता है वह अपने इदगिर्द के जाले
बड़ा दुखद होता है उसके लिये
यह  हिसाब लगाना
कि आखिर उसने क्या खोया .. क्या पाया |


रविवार, 11 जून 2017

अपने परिवार से परे एक परिवार


Sunday, June 11, 2017
3:20 PM
- इंदु बाला सिंह
हमारे अपने परिवार से परे भी हमारा एक परिवार होता है
इस परिवार के सदस्य रक्तसम्बन्धी नहीं होते हैं
पर हम एक दूसरे के सुख दुख बांटते हैं
शिक्षक और छात्र ... डॉक्टर और मरीज ...
ऑफिस के सहकर्मी
 ये हमारे मानसपटल पर गाहे बगाहे दिखते रहते हैं
और हमें अपने बीते पल याद दिला जाते हैं ।

कब्जा


-इंदु बाला सिंह
हथेली के नीचे जब तक दबा था ...मेरा था
सब कुछ मेरा था
पसीना पोंछने के लिये हथेली ऊपर की मैंने
सहोदर ने कब्जा कर लिया ।

तीरंदाज


Wednesday, June 7, 2017
8:21 AM
-इंदु बाला सिंह
पिता ने अपने बेटे और अकेली बेटी को हकदार बनाया ...
अपने मकान का
पिता के गुजरने के बाद भाई ने बहन की उपस्थिति के प्रति मौन अस्वीकृति जताई
और मुहल्ले में खूब नाम कमाया उसने ....
आखिर रखा है उसने
अपनी बहन को घर में
कुछ तीर दिखते नहीं पर चुभते हैं ।

गजब का जीवन


Monday, June 5, 2017
7:46 AM
- इंदु बाला सिंह
किया क्या मैंने
आजीवन ...चलती रही उम्मीद की उंगली थामे
भटकती रही वन में
खुद को छलती रही...
सोंचती रही ..नई राह बना रही हूं....
गजब का जीवन जिया मैंने ।

सच और झूठ


Sunday, January 29, 2017
1:05 PM
- इंदु बाला सिंह
कभी कभी हम जो देखते हैं
वह झूठ होता है
और हम जो सुनते हैं
वह भी झूठ होता है
बेहतर है
हम अपनी वैचारिक क्षमता दुरुस्त रखें ।

गजब का योद्धा


Saturday, June 3, 2017
10:04 AM
- इंदु बाला सिंह
आंसू का आंखों में सूखना
किस्मत की लाल आंखों से मुंह फेरना
हिम्मत बुलन्द रखना
जीवन संग्राम के योद्धा की पहली पहचान है
और
ऐसा ....गजब का योद्धा ....सदा अकेला रहता है .. अपने रणक्षेत्र में ।

समय चला गया


समय को बांधा औरत ने अपने बच्चों में 
हाथ पांव के मजबूत होते ही ... वे चले गये
काश बांधी होती वह अपना कुछ समय ...अपने मित्रों में
तो उसे वापस मिल पाता अपना समय ।

आखिर क्यों



- इंदु बाला सिंह
टूटते सितारे से लोग मांगते है ....अपनी चाहत 
मैं .... उस सितारे के टूटने से दुखी होती हूं
गुजरते मुर्दे को लोग नमस्कार करते हैं
पर ....मुझे उस निर्जीव का दुखी परिवार याद आता है
आखिर क्यों ।