चीं चीं !
गौरैया दिवस के दिन
कहाँ थी तुम
कितना ढूँढी थी मैं पार्क में तुम्हें
पर
तुम बालू पर फुदकती नजर न आयी
सुन रही थी
तुम्हारी चहचहाट पेड़ों में
नीचे न उतरी तुम
तुम भी अपना दिवस मना रही थी क्या
खींचना चाहती थी तुम्हारी फोटो ……
आज तीन दिन बाद
फुदकती नजर आयी हो तुम बालू पर
नाराज हूँ मैं तुमसे
ओ री ! चीं चीं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें