गुरुवार, 30 अगस्त 2018

मैं ही सर्वश्रेष्ठ

- इंदु बाला सिंह

स्कूल

हमउम्रों का जमावड़ा ....

 दोपहर का भोजनालय है ....

पहचान है .....

शान है ......

क्या होगा पढ़ कर

हिस्ट्री जाग्रफी .....

नॉकरी तो मिलती नहीं ....

मॉरल साइंस फेल मार जाता है समाज में ...

विज्ञान मुंह ताकता रह जाता है ....

भला

इतनी हताशा क्यों ? .....

मैं ही मैं क्यों ? .....

दोषारोपण कर मुक्तिलाभ क्यों ?

इतना नकारात्मक भाव !





भींगता अस्तित्व

-इदु बाला सिंह


कमरे में मन भींज जाता है ...बिन पानी के
न जाने कैसे.....
कोई प्रश्न नहीं
कोई उत्कंठा नहीं ....
शायद मन की बर्फीली सिल्ली
भींजेपन का अहसास दिलाती है ।


सोमवार, 13 अगस्त 2018

बेटा और पिता

-इंदु बाला सिंह

पिता ऐसे भी होते हैं ....

अपनी औलादों की जिम्मेदारी से चिंतामुक्त रहते हैं

बेटी तो दान हो जायेगी..दूसरे के घर की शोभा बढ़ायेगी

बेटे को मेरी जरूरत होगी तो मुझे ढूंढ़ता आयेगा

ये पिता ..  अपनी पहचान ... अपने जन्मदाताओं में तलाशते हैं

और आजीवन बंधनहीन रह स्वान्तः सुखाय की भावना से ओतप्रोत रहते हैं ।

आखिरी दांव

-इंदु बाला सिंह

आखिरी दांव भी क्या भावना है !

आदमी इस पार या उस पार हो जाता है

बस तख्ता पलट जाता है

बांझ क्या जाने पीर जनने की ।

बुधवार, 8 अगस्त 2018

चोटी की छांव

-इंदु बाला सिंह

चोटी की भी छांव होती है
सुस्ताते हैं इसमें अपने ....
छांव देख पाने की आंखें होनी बड़ी  जरूरी हैं ।

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

देववाणी

-इंदु बाला सिंह


बेटी ने कहा ....
तुमने पैदा कर के अहसान नहीं किया

बेटे ने समझाया ....
मेरी भी इच्छाएं  हैं जीवन में ...आखिर मेरा भी भविष्य  है


भौंचक मां सोंच रही है ...
मेरी किस्मत में कैसे अपने जोड़े दैव ने

आकाश खामोश है

देववाणी फिल्मों में होती है ।