बुधवार, 13 दिसंबर 2017

दीवारें हममें हैं ।


-इंदु बाला सिंह
दीवारें भी बोलतीं हैं 
कभी सुना है तुमने !
जोड़तीं हैं वे
अपनों को ...... लम्हों को ।
पर मोह न रखना स्थूल दीवारों से
बढ़ न पाओगे तुम आगे ....
जी न पाओगे ।
अपने घर की दीवारें ..... मकान की दीवारें
गड़ी रहतीं हैं कहीं हममें
पर कमजोर पलों में ...
अपनी उपस्थिति दर्ज करा देती हैं वे हमें
अपनों की अहमियत दर्ज कराती हैं वे दीवारें
हमारे खाते में ।

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