बुधवार, 13 दिसंबर 2017

प्रसूति


- इंदुबाला सिंह
विपरीत परिस्थितियों में 
नई राह की प्रसूति कष्ट से होती है
यहां सीज़ेरियन करनेवाला डॉक्टर नहीं होता ....
पर सुख मिलता है स्वावलम्बन का .....
आंधी से घबराना कैसा
पौधों सा झुक कर निकल जाएं तो अनुभव बना देता है मन फौलाद सा ।

कबाड़ीवाला


-इंदुबाला सिंह
शादीशुदा बेटी ला कर घर में रखना पड़ा 
टी० बी० थी दामाद को
मुहल्ले का ताना सुनता धोबी
अब कबाड़ खरीदने का काम करने लगा
रोज सुबह कबाड़ीवाले का दर्शन मुझे दुखित करने लगा ....
घर में पत्नी और बेटी कपड़े प्रेस कर के कमा ही सकते थे ।

उस लड़की का जीना


Saturday, November 18, 2017
4:58 PM
-इंदु बाला सिंह
कालेज जाते समय सडकें डरातीं थीं ......
पति के घर में पति के रक्त सम्बन्धी डराते थे .....
मैके में भाई बन्धु से डर लगता था .....
पति की अकर्मण्यता ने भविष्य अन्धकार कर दिया था .....
सारा जीवन ....वह डरती रही अपनों से ....
प्राइवेट नौकरी में एड़ी रगड़ती रही ...
अपने भविष्य के बारे में चिंतित रही .....
यह कैसा जीना था उस लड़की का |

दीवारें हममें हैं ।


-इंदु बाला सिंह
दीवारें भी बोलतीं हैं 
कभी सुना है तुमने !
जोड़तीं हैं वे
अपनों को ...... लम्हों को ।
पर मोह न रखना स्थूल दीवारों से
बढ़ न पाओगे तुम आगे ....
जी न पाओगे ।
अपने घर की दीवारें ..... मकान की दीवारें
गड़ी रहतीं हैं कहीं हममें
पर कमजोर पलों में ...
अपनी उपस्थिति दर्ज करा देती हैं वे हमें
अपनों की अहमियत दर्ज कराती हैं वे दीवारें
हमारे खाते में ।