सोमवार, 26 दिसंबर 2016

झूलता अस्तित्व


- इंदु बाला सिंह


ऐडमिशन न हो पाया था उसके बेटे का बड़े स्कूल में
और वह निरुद्देश्य सी स्कूल की सड़क पर घूमती रही थी देर तक उस दिन ......
लग रहा था दुनिया ही खत्म हो गयी हो
सामने एक खालीपन सा था .....
आज भारत के उच्च व प्रतिष्टित कालेज से पढ़ कर ऊँचे पद पर बैठा है उसका बेटा ...
वह उन दो पलों के बीच झूल रही है ......
गजब के पल होते हैं ......
आदमी बवह स झूलता रहता है समय के झू

प्रेम सोया





Tuesday, December 27, 2016
4:10 AM


यूँ कहते हैं
दुश्मन हो जाती है जब दुनिया
और ......सहोदर हो जाते हैं पराये
तब समझ लेना ... तुम सही राह पर हो
पर ...... तब कितना कठिन होता है  चलना 
घने अंधकार में ......दूर आकाश की ओर तकना
सूर्योदय की अपेक्षा करना ....
अपने आर्थिक अभाव में ......अपनों के बदले चेहरे देखना ......
याद आती हैं मनभावन पुस्तकें ..... उसकी नसीहतें .....
झूठ मत बोलना
दुष्टों का अंत बुरा होता है
ठंड में ठिठुरती खुशी बोल उठती है ......पर वे खुशी खुशी जी तो लेते हैं
मोह न पायें मुझे  .... मन्दिर , मस्जिद , मधुशाला
ये किसी घुट्टी पी ली मैंने
जी जलाया समय ने
प्रेम रूठा ..... सो गया गहरी नींद में ......जगाने का गुर न जानूं  |







सोमवार, 19 दिसंबर 2016

दिसम्बर की एक सुबह


Tuesday, December 20, 2016
6:53 AM


कुत्ते गोल हुये पड़े हैं बालू पर
लेकिन आदमी बंद है अपने दड़बे में
शहर कोहरे में डूबा है
सड़क की एक अट्टालिका दूसरी को नहीं देख पा रही है
सड़क पर
गर्म कपड़ो में चेन से बंधे कुत्ते निपट रहे हैं ....
रईस गर्म कपड़े में तेज चल रहे हैं  ..... सेहत बना रहे है 
दिसम्बर मुस्कुरा रहा है |

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

मनचाहा सांचे में ढल तू


Saturday, December 10, 2016
9:32 PM

- इंदु  बाला सिंह 


क्रोध बचा कर रखना
पालना
और समय पर पलीता सुलगना 
जिन्दगी एक राकेट है ...... निकल जायेगी वह भी दलदल से एक दिन
छू लेगी तू भी अपना आसमान
ओ री ! नसीब की मारी ....
आकाश में तू ही लिखेगी अपना नाम .....
ढाल ले न तू अपनी मिट्टी  ..... अपने मनचाहे सांचे में |