घड़ा
घड़ा फूट गया सुबह सुबह ।
अब घड़ा खरीदना था ।
कभी घड़ा हनुमान वाटिका के पास मिलता था पर अब नहीं। किसी ने बताया छेंद
वेजीटेबल मार्केट में मिलता है ।
वैसे मुझे पता है सुराही गमला ओल्ड राउरकेला के एक दुकान में मिलता है ।
दुर्गा पूजा चल रही थी । विजय दशमी बीती । चार दिन से एक घड़े से काम चल
रहा था । दो घड़ा रहाे से लगातार ठंडा पानी मिलता है ।
खुशियां के दशमी के दो दिन बीतेन पर निकली घड़े के दुकान की खोज करने ।
घड़े की दुकान बंद थी । पास के गन्ने के रस के ठेलेवाला ने बताया कि दुकान
दो दिन बाद खुलेगी ।
अब बहंगी में पास के गांववाले तो बेचना बहुत साल हुए घर घर जा कर बेचना
बंद कर दिए ।
हार कर मैं ओल्ड राउरकेला की ओर बढ़ी । वहां बरसों से एक दुकान है जहां
मिट्टी के छठे बड़े गुल्लक ,
सुराही , गमले और घड़े बिकते मैने देखा था । अब घड़ा साल भर बिकता है कि नहीं पता
नहीं।
घड़ा खरीदने की जरूरत का जुनून था । आखिर ठंडा पानी पीना था मुझे । फ्रिज का पानी थोड़े न कोई पीता है ।
पहुंच ही गई गमले की दुकान पर । वहां एक घड़ा मुझे दिख गया ।
दाम पूछने
पर दुकानदार ने एक सौ पचास बताया ।
मैने पूछा - घड़ा फूटा तो नहीं है न ।
नहीं आंटी। फूटा नहीं है ।- दुकानदार ने कहा ।
इसी बीच किसी दूसरे सज्जन को भी घड़े की जरूरत पड़ गई ।
उसने भी घड़े का दाम पूछा । पर उसे घड़े का दाम ज्यादा लगा ।
उस सज्जन को लगा कि एक ही घड़ा है । दुकानदार ने समझाया मेरी दुकान की डबलछत्ती में घड़ा भरा है । फिर भी ग्राहक चला गया ।
मैं तो घड़ा के मिलने पर इतनी प्रसन्न थी मानो मुझे कारु का खजाना मिल गया।