शुक्रवार, 22 जून 2018

एक मरु - उद्यान

-इंदु बाला सिंह


हर पल जीना

अथक श्रम करना

हिम्मत न हारना

सुख की नींद लेना

कि

ओ युवा !

तेरी भुजाओं में ....तूफ़ान है ... तेरा ईमान है

लिंगभेद से परे ... तू इंसान है .... तू महान है

तुझमें प्रकृति ने अपना अंश दिया है ....

तू

पहाड़ सा कठोर है

वर्षा जल सा निर्मल है

अरे !

तू तो एक मरु - उद्यान है

अपनी मां का जहान है  |

गुहार है

-इंदु बाला सिंह



मोह भंग हुआ ....आस  न टूटी

कर्तव्य डोर कस के जो बंधी  थी

बड़ी कठिन डगर थी ....

ओ असीम शक्तिमान !

शक्ति के अहसास की आस है

मन में शक्ति देना |


बोलने दो

-इंदु बाला सिंह


चुप्पी बहुत शोर करती है

बोलने दो उसे ....

तुम अनसुना कर देना

आखिर थक ही जायेगा वह ....

तुम मन में कोई खुशनुमा गीत

बस गुनगुनाते रहना ......

बोलने दो उसे .....

मौन एक आत्मघाती बम है

फटेगा तो तुम्हें भी लील लेगा ....

तुम सतरंगी गीत गाते रहो न |